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भय

bhay

नंद चतुर्वेदी

अन्य

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और अधिकनंद चतुर्वेदी

    वह लकड़बग्घा ही गया

    जिसके लिए तुम कहते थे

    जाएगा

    मेरे लिए लकड़बग्घे का डर

    पूरे जंगल में फैला था

    मैं गुलमोहर को देखता

    मुझे लगता वह सिर्फ़ उसकी हँसी है

    उस ख़ौफ़नाक लकड़बग्घे की

    वह अपनी ऊँचाई में

    एक वृक्ष की तरह होता

    कोई फल गिरता

    मैं दहशत से पीला पड़ जाता

    कोई नहीं होता

    वहाँ लकड़बग्घा होता

    तुमने अपनी जाँघ पर एक

    अजनबी और डरावनी आकृति दिखाकर

    कहा था—यहाँ नोचा था उसने

    तब से लकड़बग्घा शिशिर वात की तरह

    इस घर में घुसा है

    सुनसान होते ही

    वह फिर निकल आएगा

    यह हादसा नहीं तो और क्या है?

    जो होना था हुआ

    जो आगाह कर रहे थे उनसे

    और जो लापरवाह थे उनसे भी

    यह पूछना है कि जब

    ही गया है घर-मोहल्ले में

    लकड़बग्घा

    तब?

    तब इस दुर्गम पर्वत पर भागोगे

    या वृक्ष पर चढ़ोगे?

    अब जबकि ही गया है लकड़बग्घा

    और चबा रहा है

    एक सूखे चमड़े के टुकड़े की तरह

    हमारी ज़िंदगी, हमारा भविष्य।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नंद चतुर्वेदी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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