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भाषा

bhasha

योगेश कुमार ध्यानी

अन्य

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और अधिकयोगेश कुमार ध्यानी

    (एक)

    भाषा को नहीं पता थी अपनी ताक़त

    लोग जानते थे उसे बरतना

    भाषा नहीं जानती थी

    कि उसके नाम पर है कोई दिवस

    उसी की बदौलत हैं अनेक पुरस्कार

    भाषा बस इतना जानकर संतोष में थी

    कि एक मरीज़ डॉक्टर से कह पा रहा है

    अपना दर्द

    (दो)

    भाषा नहीं जानती थी

    कि उसके भीतर एक-दूसरी भाषा रहती थी

    जो काग़ज़ों मे नहीं होती थी दर्ज

    जिसमे किसी सच को न्याय की कार्रवाई से बेदखल कर सकने के लिए

    अफ़सरों को था यह कह देने का अधिकार

    कि इसे शामिल किया जाए रिकार्ड मे

    (तीन)

    जिस के पास बहुत कुछ था कहने के लिए

    भाषा उसी से रूठ गई थी

    जिसको बार-बार बुलाया जाता था

    जन को संबोधित करने के लिए

    उसके लिए भाषा का कोई महत्व नहीं था

    उसके सहयोगी उसके पुराने भाषणों में

    शब्दों का हेर-फेर कर उसे बोलने के लिए दे देते थे

    (चार)

    भाषा मे पारंगत एक व्यक्ति जानता है

    कि किस बात को देने हैं कान

    और किसे कर देना है अनसुना

    (5)

    भाषा को शब्दकोश से नहीं है मोह

    भाषा चाहती है

    कि मूक-बधिरों की सांकेतिक भाषा में

    ज़्यादा से ज़्यादा हों संकेत

    और दुनिया को चलाया जाए इस तरह

    कि दुनियाभर की सारी बातें समा सकती हों

    सिर्फ़ उतने संकेतों मे

    (छह)

    भाषा जानती है

    अनसुना रह जाने की टीस

    भाषा यह भी जानती है

    कि सुने जाने के लिए

    एक व्यक्ति को

    केवल भाषा का आना काफ़ी नहीं है।

    (सात)

    भाषा की भवें तन जाती

    जब कोई किसी से कहता

    चुप रहो

    भाषा ख़ूब ख़ुश होती सुनकर

    जब कोई कहता

    मैं अपनी ख़ुशी शब्दों मे बयान नहीं कर सकता

    (आठ)

    भाषा नहीं चाहती

    कि किसी की पीड़ा भाषा की सामर्थ्य से बाहर चली जाए

    भाषा अपना मन

    इतना कड़ा कभी नहीं कर सकी

    कि सुन सके शब्दों का चीख़ मे बदलना।

    स्रोत :
    • रचनाकार : योगेश कुमार ध्यानी
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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