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भालू की नाक

bhalu ki nak

अवधेश कुमार

अवधेश कुमार

भालू की नाक

अवधेश कुमार

शहर में भालू आया

आलू लाया

पहाड़ से

शहरियों के लिए

औरतों के बदले में

आलू के बदले

औरतें देना आसान है

भालू को शहरियों के लिए।

नाच दिखाया उसने

गश्त लगाई

गलियों में झाँका खिड़कियों के भीतर

पालनों में।

अब पसंद है उसे

नवजात शिशु

आलू के बदले

भालू को

अब दे रहे हैं नवजात शिशु शहरिए

आलू के बदले।

सूँघने की शक्ति हो गई है तेज़ भालू की

नाक की

नाक को ऊपर घूमता है

सारे शहर में

भालू।

भालू आया-भाला आया

आलू लाया-आलू लाया

(हर्ष चारों ओर घनघोर छाया)

नवजात शिशु सुनता है यह गाना

माना-उसके लिए यह बेमानी है

जब भी कोई नवजात शिशु आता है

नाक से ख़बर पहुँचती है भालू आता है।

नाक हो गई है अत्यधिक संवेदनशील

भालू की

नाक भालू हो गई है

धड़ाक!

एक हल्का

कोमल प्यारा छोटा-सा

मगर कस कर मुक्का मारता है

नवजात शिशु भालू की नाक पर।

पीड़ा से तिलमिलाता है भालू

आलू लेकर वापस भागा

वापस पहाड़ पर।

शहर सुनसान है

ख़ाली मकान है

केवल एक नवजात शिशु

खोल रहा है

अपनी मुट्ठी!

स्रोत :
  • पुस्तक : निषेध के बाद (पृष्ठ 24)
  • संपादक : दिविक रमेश
  • रचनाकार : अवधेश कुमार
  • प्रकाशन : विक्रांत प्रेस
  • संस्करण : 1981

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