Font by Mehr Nastaliq Web

भड़कना मत

bhaDakna mat

दलपत चौहान

अन्य

अन्य

दलपत चौहान

भड़कना मत

दलपत चौहान

और अधिकदलपत चौहान

    भड़कना मत!

    मैं अपना चेहरा उघाड़ रहा हूँ

    मेरा चेहरा बाघ-भेड़िया, सिंह-चीते का नहीं है

    (जिससे तुम्हें डर लगे या दुर्गंध आए)

    देखो इन हाथों में नाख़ून नहीं हैं

    (तुमने ही काट डाले हैं)

    फाड़ कर खा जाने जितनी ताक़त नहीं है

    मेरी आवाज़ बिलकुल सामान्य है

    तुम्हारी आवाज़ जैसी ही

    भड़कना मत!

    ये गर्जना नहीं है—चीख़ नहीं है

    नहीं है यह मेरे गाँव की आषाढ़ी रात में मेघों की गड़गड़ाहट

    ये तो तुम्हारे कान से सटे हुए

    मेरे हृदय की धड़कन है

    भड़कना मत!

    तुम्हारे पैरों के निशान के पास जो निशान हैं

    वो मेरे ही पैर हैं

    तुम्हें शिकारी कुत्ते दौड़ाने की ज़रूरत नहीं है,

    पैरों के निशान

    मेरी झोंपड़ी की तरफ़ ही जाते हैं

    अपने शिकारियों को वापस बुला लो

    मेरी हर एक हलचल पर तुम्हारी नज़र है

    तुम जंगल के अधिपति हो।

    मैं तो बिलकुल...!!!

    भड़कना मत!

    दौड़ने की मेरी शक्ति तुमने छीन ली है

    मैं तो... तुम्हारी भेड़ हूँ

    ऊन तुम्हारा, चलना-फिरना तुम्हारा, चमड़ा तुम्हारा

    भड़कना मत!

    जबसे चलना-फिरना तुम्हारा है

    तबसे मैं हिला-डुला नहीं हूँ

    में... में...

    करना भी भूल गया हूँ

    इस ऊन-रहित पीठ पर

    तुम्हारी ही सोटी के निशान हैं

    आँखों के आँसू भी तुम्हारे हैं

    और फिर... तुम्हारे कहने से ही

    मैं अपना चेहरा उघाड़ रहा हूँ

    तुम्हारे कहने से ही...

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुजराती दलित कविता (पृष्ठ 57)
    • संपादक : अनुवाद एवं संपादन : मालिनी गौतम
    • रचनाकार : दलपत चौहान
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2022

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए