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बनफ़शां का फूल

banafshan ka phool

भाई वीर सिंह

अन्य

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भाई वीर सिंह

बनफ़शां का फूल

भाई वीर सिंह

और अधिकभाई वीर सिंह

    मेरी छीपी रहे गुलज़ार मैं नीचे उग पड़ा

    किसी की नज़र लगे मैं पर्वतों में छिपा

    लिया रंग आकाश से, शोख़ी चमकती

    मूल ग़रीबी माँग आया मैं जगत में

    ओस कण गगन के पीकर, पलता किरणें खाकर।

    रात की चाँदनी में खेलता मैं हिल-मिलकर

    अपने में ही मैं, मगन निज गंध में

    हाँ दिन में भँवरे संग मिलूँ तो शरमाकर

    इठलाती गाती गंध गले लगती है जब

    मैं तनकर रहूँ, गर्दन तनिक कभी झुकाता।

    हाँ फिर भी टूटा रहा हूँ, बिछुड़ने वालो

    मेरी भीनी गंध कहीं छिप सके

    मेरी छिपे रहने की चाह, छिपे रह जाने की

    हाँ, पूर्ण नहीं हो रही, यत्न मैं करता हूँ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी का पंजाबी काव्य (पृष्ठ 30)
    • रचनाकार : भाई वीर सिंह के साथ फूलचंद मानव और योगेश्वर कौर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2014

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