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बाघ का खेल

bagh ka khel

सावित्री राजीवन

अन्य

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सावित्री राजीवन

बाघ का खेल

सावित्री राजीवन

और अधिकसावित्री राजीवन

    दादा ज़मींदार थे

    उन्होंने कभी तलवार नहीं उठाई, अपना जाल नहीं बिछाया

    कभी लगान वसूल नहीं किया

    दादा की आँखों से करुणा बहती थी

    भूखे के लिए रोटी

    प्यासे के लिए मधु

    ब्राह्मण के लिए गाय

    अतिरिक्त ज़मीन

    अतिरिक्त कपड़े

    दान के लिए

    अपना कवच छोड़े हुए नायक की तरह

    दादा असहाय के मददगार थे

    जिस चोर ने दादा का मुक़ाबला किया

    उसे भेंट में मिला चाँदी का दीपक और पवित्र हृदय

    जिस गुस्सेबाज़ आदमी ने दादा से झगड़ा किया

    शांति मंत्र से उसका सामना किया

    जिस पड़ोसी ने दादा का विरोध किया

    उस पड़ोसी को अपनी ही तरह प्यार किया

    कायर के लिए एक सारथी

    भैंस के लिए एक बीन

    यह सब दिया उन्होंने

    जो अशरण के साक्षी थे

    शिकार का उन्हें शौक़ नहीं था मगर

    और हालाँकि वे कभी शिकार पर नहीं गए

    शहर में या जंगल में

    स्वप्न में या जागृति में

    दादा के पोते को

    बतौर खिलौना एक बंदूक़ मिली

    एक बार

    खेल के बीचोंबीच

    अपने पोते के हाथ से गोली खाकर

    दादा चल बसे

    अब

    दादा के पोते का शौक़

    बाघ का खेल।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द सेतु (दस भारतीय कवि) (पृष्ठ 108)
    • संपादक : गिरधर राठी
    • रचनाकार : कवयित्री के साथ अनुवादक के. सच्चिदानंदन, राजेंद्र धोड़पकर
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 1994

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