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बड़े दिन का उपहार

baDe din ka uphaar

एलेन गिन्सबर्ग

अन्य

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एलेन गिन्सबर्ग

बड़े दिन का उपहार

एलेन गिन्सबर्ग

और अधिकएलेन गिन्सबर्ग


     
    बसंत के दिनों प्रिंसटन के घास-मैदान पर
    सपने में मैं आइंसटाइन से मिला
    नीचे झुककर मैंने उनके कोमल अँगूठे को चूमा
    रक्ताभ पोप की तरह उनका चेहरा
    ताज़ा, उदार और गुलाबी लग रहा था
    मैंने मैस्कालिन का उद्धरण देते कहा—
    कुमारी मेरी ही की तरह कुछ मैंने एक
    पृथक ब्रह्मांड की खोज की है
    हाँ सृष्टि स्वतः को ही जन्म देती है
    हम सर्वव्यापी ग्रीष्म के मुक्ताकाश नीचे
    दुपहर भोज के लिए बैठे
    मौजूद थीं ही टेनिस कोर्ट क्लब पर प्राध्यापकों की पत्नियाँ
    हमारी मुलाक़ात अनादि-अनंत सिद्ध हुई, जैसी कि उम्मीद थी
    उनकी मुट्ठी को चूमने के अपने अप्रत्याशित सूफ़ियाना
    अंदाज़ पर ग़ौर कर अणुबम का ज़िक्र मैंने नहीं किया
     
    स्रोत :
    • पुस्तक : पुनर्वसु (पृष्ठ 150)
    • संपादक : अशोक वाजपेयी
    • रचनाकार : एलेन गिन्सबर्ग
    • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
    • संस्करण : 1989

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