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अव्याहत

awyahat

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

रमाकांत रथ

अन्य

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रमाकांत रथ

अव्याहत

रमाकांत रथ

और अधिकरमाकांत रथ

    पाँत भर कंकाल बैठे अपूर्व मंच पर

    मोह रहे हैं दर्शकों को

    सुमधुर वाद्य संगीत से।

    पर्दा उठने के इंतज़ार में

    बैठे हैं असंख्य दर्शक,

    अब मुझे मंच पर जाकर, नाच-कूदकर

    किसी महामूर्ख नाटककार के लिखे

    वाक्य बोलने होंगे

    वरना खोएगी अपनी इज्ज़त, अपना महत्त्व

    यह नाट्य-संस्था।

    पर्दा उठने में

    बाक़ी है कुछ देर अभी

    इस बीच जाने कितनी घटनाएँ

    हो सकती हैं घटित सहसा,

    नहीं है असंभव प्रत्येक दर्शक का मर जाना,

    इस सभागार में बिजली गिरकर

    जल सकती हैं सारी चीज़ें।

    सरकारी आदेशानुसार

    बंद हो सकते हैं महीने भर

    सिनेमा और नाटक।

    यदि ऐसी ही कुछ आकस्मिक

    घटना घट जाए तो मैं

    अपनी इच्छा से

    बिताऊँगा इस रात का

    बाक़ी बचा तमाम समय।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तैयार रहो मेरी आत्मा (पृष्ठ 65)
    • रचनाकार : रमाकांत रथ
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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