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जियरा साँसत मा परा

jiyra sansat ma para

अनुज नागेंद्र

अन्य

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अनुज नागेंद्र

जियरा साँसत मा परा

अनुज नागेंद्र

और अधिकअनुज नागेंद्र

    जियरा साँसत मा परा अहै निकुरा से उप्पर पानी बा।

    घर-घर कै इहै किहानी बा।

    बड़कवा भाय बगिया बेंचै का मारामारी केहे अहै।

    छोटकवा खेत बाँटै खातिर दुइ-दुइ पटवारी केहे अहै।

    मेहरि चूल्हा अलगावै कै अलगै तय्यारी केहे अहै।

    जीते-जिव कुछ ना बंटै देब ज़िद महतारी केहे अहै।

    सब अपनै आपन बरत अहैं, चारिव मूं हींचातानी बा।

    घर-घर कै...

    सब चकाचौंध मा परा अहैं अब जीवन सादा भूलि गयेन।

    फिर नेक काम कै कउन बात,जब नेक इरादा भूलि गयेन।

    अपनी मेहरी कै मुँह देखतै सब माई-दादा भूलि गयेन।

    केहुका समाज कै डेर नाहीं, इज़्ज़त-मरजादा भूलि गयेन।

    भयहू के कहे मा जेठ चलै, देवरा के कहे जेठानी बा।

    घर-घर कै...

    भाइन मा जे बड़ा अहै दुइ पैसा जेकरे हांथे बा।

    वोहकै लरिका अंगरेज बना, मेहरारू साथे-साथे बा।

    माई-बप्पा, खेती-बारी सब जेकरे मूड़े-माथे बा।

    कथरी वाले डोरा से आपन पैजामा नाथे बा।

    एहमूं रोटिव कै जोग नहीं वोहमूं कबॉब-बिरियानी बा।

    घर-घर कै...

    जब भयेन रिटायर रामलखन सब पैसा बेटवै बाँटि लेहेन।

    अपुना-अपुना का चारिउ जन सब सुख-सुविधा से पाटि लेहेन।

    जब उमिर ढली होइगें बिमार,मड़ही मा टुटही खाट लेहेन।

    बेटवन से कहेन कि चेता तौ, सब पारी-पारी डाटि लेहेन।

    महतारी कौरा माँगि रही, बहिनिव होइ चली सयानी बा।

    घर-घर कै...

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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