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बड़का

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अनुज नागेंद्र

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और अधिकअनुज नागेंद्र

    बड़का तेवारी मरेन अबकी जाड़ा।

    रहेन लाख दुसमन तबो मोछ टेयेन।

    आँधी-तुफाने वोई नाव खेयेन।

    मेहरारू मरिगै भा एक्को लरिका,

    जिनगी भै भाइन कै परिवार सेयेन।

    खुला वोनकी ख़ातिर सरग कै केवाड़ा।

    बड़का तेवारी मरेंन अबकी जाड़ा।

    कबो केहुकै ना आतिमा वै दुखाएँन।

    करेन पैसरम ख़ूब खेती कमाएँन।

    ना मंदिर, ना पूजा, ना घंटी, ना माला,

    हमेसा करम का धरम वै बताएँन।

    कहेन मर्द कै जिंदगी अखाड़ा।

    बड़का…

    जउन बात आई तेवारी के मन मा।

    कहै के जे रोकै अबै ना जन्मा।

    तौ इरखादोखी, ना कपटी, घाती,

    सामिल भयेन वै केहू के पतन मा।

    कहैं काम केहुकै कबौ जिन बिगाड़ा।

    बड़का…

    कबौ भाय लालच मा हरगिज फंस्या जिन।

    तेवारी कहैं केहुकै गटई कस्या जिन।

    होइ जाय गलती भले जउन तोहसे,

    मुला भूलि के केहुके उप्पर हंस्या जिन,

    हसीं द्रोपदी बाज खूनी नगाड़ा।

    बड़का…

    कक्कू के तेरही मा भै खाबाखइया।

    एकट्ठा भयेन नात,घर,गावँ भइया।

    कहेन कुछ जने वै जौ पोइहैं ना खाबै,

    तेवारी कहेन हम रहब अब पोवइया।

    जानीथा सबका बहुत जिन दहाड़ा।

    बड़का…

    होली मा उनकै अजब रंग देखा।

    लरिकन के साथे मा हुड़दंग देखा।

    मस्ती मा फरकत गली गावँ टोला,

    पिये ठंडई खोब छनी भंग देखा।

    गावत कबीरा लेहे दस लुंगाडा।

    बड़का…

    करा भेद भइया तानी पद-कुपद मा।

    तिफरका ना डारा तू भउजी-ननद मा।

    तेवारी कहैं बात गठियाय ल्या तू,

    हमेसा रह्या भाय तू अपनी हद मा।

    केहुके दुआरे पै खूंटा ना गाड़ा।

    बड़का…

    जब तक जवानी रही खेल खेलेन।

    अंतिम दिना मा बहुत कस्ट झेलेन।

    जेकरे बरे जिन्दगी भै मरेंन वै,

    घर से निकारिस तौ रहिगें अकेलेन।

    रेक्सा चलायेंन बेचेन सिंघाड़ा।

    बड़का…

    तेवारी बेचारू तौ जल्दी निसरिगें।

    मुला साल बीता ना सबकेउ बिसरिगें।

    तेवारी कहैं वै तौ जीते जी मरिगें,

    अगर केहु निगाहे से केहुके उतरिगें।

    पढ़ाया केहुका दुखे मा पहाड़ा।

    बड़का…

    स्रोत :
    • रचनाकार : अनुज नागेंद्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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