Font by Mehr Nastaliq Web

और हम निश्चिंत हो जाते हैं

aur hum nishchint ho jate hain

स्मिता सिन्हा

अन्य

अन्य

स्मिता सिन्हा

और हम निश्चिंत हो जाते हैं

स्मिता सिन्हा

और अधिकस्मिता सिन्हा

    देश के एक मुहाने पर खड़े

    हम देर तक देखते रहते हैं

    भभकती हुई आग की ऊँची लपटें

    दरकते हुए मानचित्र

    फिर सहसा नाप आते हैं

    अपने घर की दीवारें

    पाट आते हैं चहुँदिश

    और हम निश्चिंत हो जाते हैं

    हम सुनते हैं परिंदों की चीत्कार

    घुटती हुई चीख़-पुकार

    फिर कुत्तों के रोने पर

    या कि दरख़्तों की चरमराहट पर

    घबड़ाकर धर देते हैं

    अपने दोनों कानों पर हाथ

    और हम निश्चिंत हो जाते हैं

    हम चुपचाप गुज़रते हैं

    लावारिस ख़बरों की दुनिया से

    देखते हैं तबाह होती ज़िंदगियाँ

    और टूटते-बिखरते हुए घर

    हम सहमते हैं

    सिहरते हैं

    फिर डर कर फेरते हैं

    अपने गर्दन पर उँगलियाँ

    असुरक्षित-से माहौल में

    थोड़ा और सुरक्षित करते हैं अपनों को

    और हम निश्चिंत हो जाते हैं

    हर नए दिन के साथ

    हमारे दिल और दिमाग़ से

    उतरती जाती है

    बारूद और लाशों की गंध

    धुलते जाते हैं

    बेमौसम के सारे घिनौने धब्बे

    ख़ुद को समेटते सँभालते

    हर पल गुम होते जाते हैं

    अपनी व्यस्तताओं में

    हम हर दिन निश्चिंत, निश्चिंत

    और निश्चिंत होते जाते हैं

    हालाँकि यह समझना मुश्किल तो नहीं

    कि इस बदहवासी में हम लगातार

    खोखले होते जा रहे हैं

    ख़त्म हो रहे हैं अपने अंत तक

    और यह भी कि

    ये निश्चिंत होने का वक़्त तो बिल्कुल भी नहीं

    पर क्या करें

    कहीं किसी ख़बर

    कहीं किसी दृश्य में

    हम हैं भी तो नहीं...

    स्रोत :
    • रचनाकार : स्मिता सिन्हा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए