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आत्ममुग्ध मसखरा

atmamugdh masakhra

कपिल भारद्वाज

अन्य

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कपिल भारद्वाज

आत्ममुग्ध मसखरा

कपिल भारद्वाज

और अधिककपिल भारद्वाज

    इतिहास की एक इबारत में लिखा गया है

    कि एक राजा बंशी बजाता रहा और

    देश जलता रहा, ख़्वाहिशों की कीमत पर।

    हमने सीखा कि संगीत भी अश्लील हो सकता है।

    इतिहास की एक ओर इबारत में कभी लिखा जाएगा

    कि एक महादेश का आत्ममुग्ध मसखरा

    विलासिता की अट्टालिका बनाने में इतना मुग्ध हुआ

    कि शहर के शहर मुर्दों के दड़बे में बदलते रहे

    और राजमिस्त्री भरी दोपहरी सरिए

    और सीमेंट के साथ अठखेलियाँ करते रहे।

    हमने सीखा कि कला भी अश्लील हो सकती है।

    रही बात कविता की तो,

    वो हमेशा से संघर्ष से चूते पसीने की इबारत लिखने में मशगूल रही।

    राजधानी में प्रवेश करते ही

    अपने सींगों को यदि ओर पैना कर पाए

    तो मैं अपनी सारी कविताओं को फूँक दूँगा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : कपिल भारद्वाज
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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