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कोई दूसरा

koi dusra

अनुवाद : विनोद रिंगानिया

हरेकृष्ण डेका

अन्य

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हरेकृष्ण डेका

कोई दूसरा

हरेकृष्ण डेका

आईने में दिखाई दे रहा शख़्स ही क्या मैं हूँ?

काले-सफ़ेद खिचड़ी बाल, लंबी ठुड्डी, सलवट भरी भौं,

ललाट पर कई सरल रेखाएँ

क्या यही है वह

जो मेरा ख़ास अपना है।

कभी-कभी मुझे शक होता है

मैं इस आदमी को नहीं पहचानता।

यह कुत्सित है या सुंदर, साधु है या धोखेबाज़।

यह कोई निकम्मा कापुरुष है या साहसी और दिलेर।

हे मेरे परिचित जनगण, मेरे प्रियजन,

मेरी पत्नी, कन्या, पुत्र और भाइयों,

मेरे अन्नदाता मालिक और प्रभुभक्त कर्मचारियों

तुम लोगों ने मुझे जो बनने के लिए कहा था

मैं वही बनना चाहता हूँ।

लेकिन मैं अपने आपको नहीं पहचानता।

शायद आईने के अंदर क्रमशः अस्पष्ट हो रहा

यह धूसर अवयव मेरा ही प्रतिबिंब है।

तुम सभी लोग इसे पहचानते हो।

तुम सभी लोग इसे पहचान रहे हो।

लेकिन इसके मस्तिष्क के अंदर जो मैं नाम का

एक अदृश्य प्रदाह है

तुम लोगों के स्वस्थ हाथ कहीं उसे

निरामय कर दें इस डर से

वह बार-बार चीख़ उठता है

यह बात तुममें से कौन समझ पाया है?

स्रोत :
  • पुस्तक : कोई दूसरा (पृष्ठ 7)
  • रचनाकार : हरेकृष्ण डेका
  • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
  • संस्करण : 2021

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