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असहनीय

asahniy

अमर दलपुरा

अन्य

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अमर दलपुरा

असहनीय

अमर दलपुरा

सुगना और मैं

सोलह की उम्र में स्कूल से भागे

घरवालों ने दरवाज़े बंद कर लिए

माँ कपूत कहकर

अपनी कोख को कोसने लगी

खाट पर बैठे पिता ने

मेरी तरफ़ देखा भी नहीं

बहन ससुराल में थी

उसने जाने क्या सोचा होगा

भाई ने जात-बिरादरी के डर से

हज़ार रुपए देकर

गाँव से भगा दिया

मेरे दिशाहीन पैर

उस शहर में पहुँचे

जहाँ गाँवों से उजड़े हुए लोग

मज़दूरी करते हैं...

मैंने सबसे पूछा?

ख़ुद से पूछा

क्या किया मैंने

सबने हत्या से भी असहनीय बताया

जीवन के सबसे कोमल दिन

इस तरह कठोर हुए

हम शहर के चौराहे पर मज़दूर हो गए

स्रोत :
  • रचनाकार : अमर दलपुरा
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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