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काले बादल

kale badal

डाग हामरशुल्ड

अन्य

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डाग हामरशुल्ड

काले बादल

डाग हामरशुल्ड

और अधिकडाग हामरशुल्ड

    काले बादल घुमड़ कर रहे हैं

    सागर के तट अभी तक दिखते थे, अब छिपे जा रहे हैं

    आँधी जंगल में तालाब का सुरमई पानी

    उधेड़ कर रख दे रही है

    धरती पर भागते हिरन के पाँव के निशान

    और बीच-बीच में ख़ून के दाग़

    ख़ामोशी दिमाग़ का कवच चकनाचूर कर दे रही है

    शरद की निथरी दृष्टि के आगे वह नंगा खड़ा रह जाता है।

    बारूदी सुरंग पकड़ने के यंत्र की सुई

    दाएँ-बाएँ निरंतर वही पुरानी चाल चलती जाती है।

    बिना अभिप्राय के शब्द हम दोनों के बीच

    लगातार उछाले जाते रहते हैं।

    भूली हुई साज़िशें फिर से अपना मकड़जाल

    हमारे हाथों पर मढ़ देती हैं।

    एक विदूषक का मुखौटा पहने हुए मेरे दिमाग़ का

    दम घुटता है।

    सूख कर वह चरमरा गया है

    और झरता जाता है मेरा दिमाग़।

    स्रोत :
    • पुस्तक : दरवाज़े में कोई चाबी नहीं (पृष्ठ 232)
    • संपादक : वंशी माहेश्वरी
    • रचनाकार : डाग हामरशुल्ड
    • प्रकाशन : संभावना प्रकाशन
    • संस्करण : 2020

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