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अपना आँगन

apna angan

माधव शुक्ल मनोज

अन्य

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माधव शुक्ल मनोज

अपना आँगन

माधव शुक्ल मनोज

और अधिकमाधव शुक्ल मनोज

    चारपाई ज़मीन घेरती है

    मैं नीचे सो सकता हूँ

    और अपनी ज़मीन बचा सकता हूँ।

    जीवन में किसने, क्या बचाया?

    सोचता हूँ :

    एक आँगन मेरी नज़रों में

    घूम जाता है।

    मेरा कमरा दालान से जुड़ जाता है

    एक झाँकता दरवाज़ा

    आँगन के उस पार

    किसी की प्रतीक्षा में

    चुपचाप खुला का खुला

    रह जाता है।

    दरवाज़ा शायद बंद हो

    मैं अपनी आँखें

    बंद करना चाहता हूँ

    और नीचे लेट कर

    सुकुड़ता हुआ

    बचाना चाहता हूँ

    अपनी ज़मीन

    अपना आँगन।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साक्षात्कार 131-133 (पृष्ठ 47)
    • संपादक : मनोहर वर्मा
    • रचनाकार : माधवशुक्ल मनोज

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