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आँखों का दोष

ankhon ka dosh

नवीन रांगियाल

अन्य

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नवीन रांगियाल

आँखों का दोष

नवीन रांगियाल

और अधिकनवीन रांगियाल

    ज़्यादातर दोष आँखों का है

    घूम-फिरकर

    सारी दुनिया वहीं लौटती है।

    आँख किनारे

    तुम्हारे आईलाइनर की हद पर

    हल्की नमी में

    काजल घुलकर तिर जाता है जहाँ

    वहीं घट और घाट हैं।

    गहरे-काले-कत्थई

    डॉर्क सर्कल में

    जहाँ पूरे साल के रतजगे जमा हैं

    वहाँ भी एक दुनिया मौजूद है।

    तन की ख़ुशबू

    और मांसल आकांक्षा से परे

    प्रेम की अज्ञात खोह में भी

    एक दुनिया रवाँ है।

    तुम्हारी दोनों हथेलियों को जोड़ने पर

    त्रिभुज के बाज़ू में

    जो बीज है

    वहाँ भी दुनिया संभव है।

    कुछ नुक़्स

    उस पहली कविता के हैं

    और तुम्हारे हेयर ड्रायर के भी

    जो तुम्हारे बालों की हिदायत नहीं सुनते

    और मेरे कंधों पर उलझते रहे हर शाम।

    मैं डूबने के लिए

    डूबकर मरने के लिए

    तुम्हारी आँखों के किनारे चुनता हूँ।

    स्रोत :
    • रचनाकार : नवीन रांगियाल
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए द्वारा चयनित

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