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जब तुम नाराज़ हुए थे मुझसे

jab tum naraz hue the mujhse

मीनाक्षी मिश्र

अन्य

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मीनाक्षी मिश्र

जब तुम नाराज़ हुए थे मुझसे

मीनाक्षी मिश्र

और अधिकमीनाक्षी मिश्र

    कंठ अवरुद्ध हो गया था मेरा

    पक्षी त्रस्त थे उस दिन

    वर्षा भी कम हुई

    हृदय को निरंतर भेद रहा था

    वत्सदंत-सा कोई तीर

    अनायास ही समझ आने लगा था

    सूर के लिखे भ्रमर गीतों का मर्म

    अधिकांश प्रेम कविताएँ भी तो

    अप्रांसगिक लगने लगी थीं

    हालाँकि शिल्प विधान से अपरिचित थी मैं

    पर एक एलिजी लिख लेने का मन हुआ था

    लाओत्से के जीवन सूत्र भ्रामक लगे थे

    जब तुम नाराज़ हुए थे मुझसे

    लगने लगा था जैसे

    किसी दु:स्वप्न में डूब रहा है संसार

    या फिर टूट रहा है ब्रह्मांड का कोई तारा कहीं

    देखो न!

    तब भी मुक्त रही थी मैं

    निःसहाय होने की अनुभूति से

    तुम्हारे सान्निध्य ने मुझको

    इतना स्वावलंबी तो अब बना ही दिया है

    किंतु तुम तब आवेशों में आबद्ध थे

    प्रीतिकर नहीं लगी थीं मेरी बातें तुम्हें

    आयु मेरी देह को शिथिल करती रही

    पर तुम्हारे प्रति मेरे अनुराग को नहीं

    फिर एक दिन

    मेरे इस सामर्थ्य पर मोहित होकर

    सहर्ष स्वीकारा था तुमने

    कि इस तरह प्रेम

    यदा-कदा ही उतरता है

    पृथ्वी पर!

    स्रोत :
    • रचनाकार : मीनाक्षी मिश्र
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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