अक्रोध

akrodh

तिरुवल्लुवर

301

जहाँ चले वश क्रोध का, कर उसका अवरोध।

अवश क्रोध का क्या किया, क्या किया उपरोध॥

302

वश चले जब क्रोध का, तब है क्रोध ख़राब।

अगर चले वश फिर वही, सबसे रहा ख़राब॥

303

किसी व्यक्ति पर भी कभी, क्रोध कर, जा भूल।

क्योंकि अनर्थों का वही, क्रोध बनेगा मूल॥

304

हास और उल्लास को, हनन करेगा क्रोध।

उससे बढ़ कर कौन है, रिपु जो करे विरोध॥

305

रक्षा हित अपनी स्वयं, बचो क्रोध से साफ़।

यदि बचो तो क्रोध ही, तुम्हें करेगा साफ़॥

306

आश्रित जन का नाश जो, करे क्रोध की आग।

इष्ट-बन्धु-जन-नाव को, जलायगी वह आग॥

307

मान्य वस्तु सम क्रोध को, जो माने वह जाय।

हाथ मार ज्यों भूमि पर, चोट से बच जाय॥

308

अग्निज्वाला जलन ज्यों, किया अनिष्ट यथेष्ट।

फिर भी यदि संभव हुआ, क्रोध-दमन है श्रेष्ठ॥

309

जो मन में नहिं लायगा, कभी क्रोध का ख़याल।

मनचाही सब वस्तुएँ, उसे प्राप्य तत्काल॥

310

जो होते अति क्रोधवश, हैं वे मृतक समान।

त्यागी हैं जो क्रोध के, त्यक्त-मृत्यु सम मान॥

स्रोत :
  • पुस्तक : तिरुक्कुरल : भाग 1 - धर्म-कांड
  • रचनाकार : तिरुवल्लुवर
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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