Font by Mehr Nastaliq Web

अनेक मुँह और असंख्य जिह्वाएँ

anek munh aur asankhya jihwayen

अनुवाद : मनसाराम 'चंचल'

चरण सिंह

अन्य

अन्य

चरण सिंह

अनेक मुँह और असंख्य जिह्वाएँ

चरण सिंह

और अधिकचरण सिंह

    सच पूछो तो

    हम सब मानव

    आदि युग से चलते-चलते

    पहुँचे हैं आज समय की

    उस ढलान पर

    जिस पर चढ़ते प्रतीत हो रहा

    कि हममें से हर एक की

    दो-दो नहीं

    चार-चार टाँगें हैं, बाजू, कान और आँखें,

    और हर एक के दो-दो नाक

    और दो मुँह जिह्वाएँ।

    दो टाँगों को खींच रही

    मद्धम मिट्टी-सी राहों, मंज़िलों

    की मोह-ममता और मोह पीछे को

    और टाँगों पर

    भ्रमों, संदेहों का बंधन

    दूध दोहते गाय की टाँगों पर बँधा बंधन - नीरन।

    सौ बंधन तोड़कर

    समय के पास से भी आगे ही पग बढ़ाए।

    दो बाँहों में मरियल-सा प्रेम-प्लावन

    साहस दिया गया

    ज़ोरदार संबल

    और बाँहों में

    अति विनम्र आशा विश्वासों को बग़ल में

    या कोमल आलिंगन में लेने के

    असंख्य मनुहारों ने पसारे हाथ

    दो कानों में—

    गले-सड़े दीमक के शिकार

    धर्म-ग्रंथों की है मैल भरी

    और दो कानों की

    चेतना है अपरिचित पर,

    अति सुहानी सरगम और

    तीव्र हृदय की धड़कन

    दो आँखों में बीती सदियों की गाध है

    और दो आँखों में चमक रहे

    अति अपरिचित और अनगिनत

    चाँद सितारों के सतरंगी असंख्य साये।

    एक नाक में

    मरी-दबी मर्यादाओं की गंध भरी है

    और दूसरे में बिलस रही

    अति सुंदर फूल कलियों की

    रमणीय-सी एक सुगंधि।

    एक मुँह की / जिह्वा को है

    अंधविश्वासों का लहू लगा

    दूसरी जिह्वा ले रही है

    नए स्वाद भाव तरंगों के

    आस्वादों के चटखारे

    और हम सब

    सच पूछो तो मानव नहीं

    बस प्रतीत हो रहे

    केवल मात्र टाँगें, मात्र आँखें।

    अनेक मुँह और असंख्य जिह्वाएँ

    जो अपनी आयु भोग चुकी हैं

    जो जीवन को खा जाएँगी।

    स्रोत :
    • पुस्तक : आधुनिक डोगरी कविता चयनिका (पृष्ठ 83)
    • संपादक : ओम गोस्वामी
    • रचनाकार : चरण सिंह
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2006

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए