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अंधे कवि का आँख

andhe kawi ka ankh

शिवमंगल सिद्धांतकर

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शिवमंगल सिद्धांतकर

अंधे कवि का आँख

शिवमंगल सिद्धांतकर

और अधिकशिवमंगल सिद्धांतकर

    शाफ़्ट की ख़ुशबू से तबाह

    लिफ़्ट के अंदर जब कोई जंगली फूल खिलता है

    उठाने के लिए बढ़े हाथ नम हो जाते हैं

    नमस्कार करते हुए

    क़ब्र-कथाओं पर काला जल यदि कोई छिड़कता है

    इतिहास के आईने से आबरू बचाते हुए

    कोई-न-कोई मस्तिष्क की शांति खोजता होता है

    युद्ध की मेहँदी लगाते हुए

    ऊँचे जंगलों में हिंसक पशु जब दहाड़ता है

    वसंत को झकझोर कर इंजिन की तरह चला देता है

    परछाइयों को क़ैद करते हुए

    झाड़ियों को उस पार तक ले जाता है

    अंधे कवि की आँखों की तरह दृश्य बनाता है

    काली चिड़िया के मुहावरे के पास जो जाते हैं

    ख़ुशबू की याद दुहराते हैं

    हाथ को हाथ देते हुए

    स्रोत :
    • पुस्तक : मेरे लोग (पृष्ठ 24)
    • रचनाकार : शिवमंगल सिद्धांतकर
    • प्रकाशन : अधिकरण प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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