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अनागत

anagat

अनुवाद : अशोक बाचुलकर

शांता शेलके

अन्य

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और अधिकशांता शेलके

    धीरे-धीरे आकाश में फैलती साँझ

    पश्चिमाकाश में उमड़ते सिंदूरिए रंग

    जाने-अनजाने मन को स्पर्श करता हवा का मंद झोंका

    निःस्तब्ध जलाशय में उठती थरथर तरंग;

    चारों ओर घना जंगल, लयबद्ध चक्करदार पगडंडियाँ

    दूर नीचे घाटी में छुपा छोटा-सा आभासिक गाँव

    आने वाली रात्रि का आभास देता फैलता पतला कोहरा

    सब कुछ इतना धूसर, सुंदर नहीं दिया जा सकता उसे कोई नाम।

    मैं अकेली खड़ी-खड़ी भर लेती संपूर्ण दृश्य आँखों में

    हिलोरते पानी की तरह हिलोरता अस्थिर सब कुछ शांत होता

    कई वर्ष बाद आगे घटने वाली किंचित दुःखद कहानी

    उसका धुँधला भविष्य चित्र क्षण भर सामने आता-चौंका जाता।

    संपूर्ण सुंदरता पर चलता रहता अनागत का दुर्निवार प्रवाह

    भर आता गला, निःशब्द - मात्र हिलते होंठ।

    स्रोत :
    • पुस्तक : जन्मजाह्नवी (पृष्ठ 22)
    • रचनाकार : शांता शेलके
    • प्रकाशन : शब्दालोक
    • संस्करण : 2005

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