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अमलतास

amaltas

विश्वंभरनाथ उपाध्याय

अन्य

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और अधिकविश्वंभरनाथ उपाध्याय

    कहीं हरे, कहीं कत्थई कानों में

    पीली पोनियाँ लटकाए तुम कौन हो

    धारासार वर्षा में सिर्फ़ कुछ उचके

    शीत में उजड़ गए चुपचाप

    अब जब सब जल-भुन रहे हैं

    हाँफ रही है हयात

    औंघता हुआ सुखी अस्तित्व

    तुंदिल हो रहा है उमस में

    तब तुम्हीं बताओ अ-मल-तास

    तुम्हें ताप में क्या मिल गया है

    जो प्रत्येक लू-लपट पर

    तुम पीताभ झुमके निकालते हो छलक-छलक कर

    तुम अपना दाँव मुझे बता दो

    मैं भी खिल सकूँ ठट्ठामार कर

    और कह सकूँ लोगों से

    कि दग़ते-दग्ध होते हुए

    किस तरह प्रस्फुटित होकर

    हँसा जा सकता है प्रत्येक हार पर

    हाय पर!

    स्रोत :
    • पुस्तक : निषेध के बाद (पृष्ठ 91)
    • संपादक : दिविक रमेश
    • रचनाकार : विश्वम्भरनाथ उपाध्याय
    • प्रकाशन : विक्रांत प्रेस
    • संस्करण : 1981

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