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अकाल

akal

विजय सिंह

अन्य

अन्य

और अधिकविजय सिंह

    एक

    बरसात कहाँ है सिवाय उम्मीद के और कहीं नहीं

    खेत बाट जोह रहे हैं बरसात आए तो

    वे कुछ हँस लें।

    दो

    मेड़ अकेला नहीं है पीली-लाल मिट्टी के साथ देख रहा है

    पेड़ में बैठी चिड़िया को कि कब वह चोंच में पानी भर लाए और वह

    हरा हो ले।

    तीन

    खेत की मिट्टी से

    मैंने पूछा

    तुम अच्छी हो

    उसने उदास आँखों से

    कहा

    आँखों में पानी नहीं है।

    चार

    इतना चुप

    पगडंडी को मैंने

    कभी नहीं देखा

    हवा ने पत्तियों के

    कान में कहा

    और सूखी पत्तियाँ

    उड़ गई

    पगडंडी के पास।

    पाँच

    पेड़ चुप, पत्थर पगडंडी चुप

    नदी चुप, चिड़िया चुप

    खेत चुप

    सोमारू चुप

    आसमान देख रहा है। धरती में सब चुप हैं।

    छह

    अख़बार में छपा है

    इस साल सूखा निश्चित है

    और

    देखते-देखते बाज़ार से

    अनाज नदारद हो गए।

    सात

    बहुत-सी कविताएँ लिखूँगा

    खेत की तरह हरा-भरा

    पानी की तरह लबालब

    लेकिन कविता से

    पानी नहीं गिरा पाऊँगा।

    आठ

    हवा में

    पानी नहीं है

    पेड़ में

    नमी नहीं है.

    खेत में क्या है

    कुछ भी नहीं

    कुछ भी नहीं।

    नौ

    उदास है गाँव

    उदास है सोमारू

    उदास है डोकरी

    उदास है कुकड़ी उदास है पेड़

    उदास है बाड़ी

    उदास है तलाब

    उदास है पगडंडी

    उदास है खेत

    लेकिन

    उदास नहीं है

    गाँव का मोटला साहूकार हँस रहा है

    बही-खाता नया बना रहा है।

    दस

    सब इंतज़ार कर रहे हैं

    कि आकाश रोएगा मोटे-मोटे आँसू

    और हम हँसेंगे

    हँस सकेंगे फिर।

    ग्यारह

    बहुत दिनों तक

    बेचारा बीज खेत में इंतज़ार करता रहा

    लड़ता रहा,

    सूखता रहा

    और अंत में

    हँसकर मर गया

    कहकर मिट्टी से

    अलविदा सूखा, अलविदा।

    स्रोत :
    • रचनाकार : विजय सिंह
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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