अजनबी स्त्री

ajnabi stri

अलेक्सांद्र ब्लोक

अलेक्सांद्र ब्लोक

अजनबी स्त्री

अलेक्सांद्र ब्लोक

शाम के वक़्त रेस्तरांओं के ऊपर

गर्म हवा लहराती है खोखल

और नशीले अभिवादन चीख़ उठते हैं

दुर्गंधित वासंती साँसों से टकराकर।

दूर, गलियों को धूल

और बंगलों की नीरस क़तारों के ऊपर

धुँधली-सी चमकती है एक बेकरी की गाँठदार रोटी

और किसी बच्चे की चीख़ गूँज उठती है।

और हर शाम, सींखचों के फाटकों के पार

अपने बोलर हैट टेढ़े किए हुए

पैदाइशी कलाबाज़

घूमते हैं अपनी औरतों के साथ नाबदानों के किनारे।

झील के ऊपर चप्पुओं के कुंडे खनकते हैं,

सुनाई देता है किसी औरत का चीत्कार,

और हर तरह की बातों के आदी आसमान में

चाँद की मूढ़ खोपड़ी चटकती रह जाती है।

और हर शाम मेरे एकमात्र दोस्त का चेहरा

मेरे जाम में प्रतिबिंबित होता है

और मेरी तरह वह भी निस्तेज और स्तब्ध हो जाता है

तीखी और विचित्र शराब के असर से।

और हमारे पास की मेज़ पर

ऊँघते वेटर चिपके रहते हैं

और ख़रगोश की आँखों वाले पियक्कड़

चीख़ उठते हैं—'शराब में ही सत्य है'।

और हर शाम, नियत समय पर

(या कि मैं सिर्फ़ सपना देखता हूँ)

रेशम में लिपटी एक रमणी की देह

धुँधली खिड़की में डोलती है।

और पियक्कड़ों के बीच चुपचाप रास्ता बनाती

हमेशा अकेली, बिना किसी संगी के,

कुहरों और ख़ुशबुओं को हवा में बिखेरती

खिड़की के पास की सीट पर बैठ जाती है।

और पुरानी दंतकथाओं की गंध लिए होता है

मुलायम रेशम

और हैट में खुँसे होते हैं शोक-सूचक पंख

और अँगूठियाँ पहने हुए होते हैं नाज़ुक हाथ।

और इस विचित्र सामीप्य से बँधकर

मैं काले घूँघट पर आँखें टिका देता हूँ

और देखता हूँ एक मंत्र-बद्ध तट

और एक मंत्र-बद्ध दूरी।

मुझे गूढ़ रहस्य सौंपे गए हैं

किसी का दिल मुझे सौंप दिया गया है

और तीखी शराब

मेरी आत्मा की रगों में दौड़ रही है।

और झुके हुए शुतुरमुर्ग़ के पंख

मेरे दिमाग़ में लहरा रहे हैं

और नीली अगाध आँखें

दूर के तट पर खिल रही हैं।

मेरी आत्मा में एक ख़ज़ाना छुपा हुआ है

जिसकी चाभी सिर्फ़ मेरे पास है!

तुम ठीक कहते हो पियक्कड़ शैतान!

मैं जानता हूँ, सत्य शराब में है!

स्रोत :
  • पुस्तक : आधुनिक रूसी कविताएँ-1 (पृष्ठ 29)
  • संपादक : नामवर सिंह
  • रचनाकार : अलेक्सांद्र ब्लोक
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन, नई दिल्ली
  • संस्करण : 1978
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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