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अबोली प्रार्थनाएँ

aboli prarthnayen

जावेद आलम ख़ान

अन्य

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जावेद आलम ख़ान

अबोली प्रार्थनाएँ

जावेद आलम ख़ान

और अधिकजावेद आलम ख़ान

    सर पर रखे हाथ के नर्म स्पर्श में

    मुखर होती अबोली प्रार्थनाएँ

    जब पिघलती हैं तो द्रव्य में नहीं

    सीधे भाप में बदलकर

    हवा को हल्का बना देती हैं

    सर का बोझ उतर जाता है देखते-देखते

    कानों में बजते एकांत के उदास क्षणों में

    जब दुर्निवार बेचैनी में बदल जाता है मौन

    तब किसी बच्चे की एक किलकारी

    आत्मा पर झरने उड़ेल देती है

    जैसे सहला दिए हों किसी ने गाल

    ओस सनी गुलाब की नाज़ुक पंखुड़ियों से

    कठिन रास्तों पर पैर जब भी ठिठके

    ज़ख़्मी हिम्मत के गिरने से ठीक पहले

    स्मृति में कौंधी एक मख़मली मुस्कान

    आँखों में उड़ने लगे उजले कबूतर

    मन साफ़ हो गया

    दुआएँ आईं और उँगली पकड़ाकर ले चलीं

    चाँदनी हँसी वक़्त रुका और एक पल शबे-मेराज हुआ

    वॉक ओवर में जीत से ज़्यादा

    खेलकर हार जाना अधिक लाभकारी हुआ

    मैं जब भी हारा दुख से भारी हुआ

    जीता तो उन्हीं दुखों का आभारी हुआ

    मेरी समझ परिणाम को भूलकर

    प्रक्रिया पर कुछ इस तरह अटकी

    कि मुझे लहरें किनारों से ज़्यादा ख़ूबसूरत लगीं

    मेरी कामना रही

    कि हवा में गिरती बारिश की बूँदें कभी ज़मीन को छुएँ

    कि बादल उड़ते ही जाएँ बिना बरसे

    कि चाँदनी उतरे तो दौड़ती ही रहे

    दुनिया के हर अँधेरे कोने तक

    प्यार हो तो बस महसूस हो कहा जाए

    ज़िंदा हो तो जिएँ किसी के लिए सिर्फ़ बहा जाए

    क्योंकि बहना प्रक्रिया में शामिल होना नहीं होता

    मुर्दा होने की अलामत भी होता है

    स्रोत :
    • रचनाकार : जावेद आलम ख़ान
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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