Font by Mehr Nastaliq Web

अभियोग

abhiyog

अनुवाद : वै. वेंकटरमण राव

कुंदुर्ति आंजनेयलू

अन्य

अन्य

और अधिककुंदुर्ति आंजनेयलू

    इतिहास ने बुलवाया है, बहिन चलता हूँ मैं

    पंचों के सामने प्रस्तुत होने बुलाया है मुझे

    (छोटी लड़की मुँडेर से गिरेगी सावधान रहना,

    बड़े को स्कूल भेजो, समय पर कुछ उसको डाल देना,

    असल में वह बड़ा ही शरारती है, शायद मेरे ही लक्षण आए हैं)

    वही अभियोग है मुझ पर, कहते हैं कि खिजाया है मैंने कविता को

    छंद को हल्की नज़र देखा है

    सबको मैंने असली स्थिति जताई है

    बहिन चलता हूँ मैं, इतिहास ने बुलवाया है मुझे

    नए सिरे से भावित करना ग़लती है,

    ऊँचे शिखरों पर पहुँचने की कामना करना ग़लती है,

    समाज में आने वाले परिवर्तन को पहले ही पहचानने के लिए,

    समय के अनुसार कविता में वर्तन लाने के लिए,

    वृत्त को छोड़कर, मानव-वृत्त को स्वीकारा है मैंने

    पंडित को मात्र दोषज्ञ बताया है, वाद-प्रतिवाद किया है मैंने,

    हर पाठक को रसज्ञ प्रतिपादित किया है मैंने

    बहिन चलता हूँ मैं, इतिहास ने मुझे बुलवाया है

    (माताजी को पत्र लिखो, भाई पंचों के सामने गया है,

    उनका हृदय विकल होगा, हठात् ख़बर मिलेगी तो)

    कहाँ बहिन तुम बताओ!

    मैंने कौन-सी ग़लती की है?

    अंधकार को देखकर शुक्रतारा उगेगा नहीं क्या?

    उदीयमान सूर्य की भू-यात्रा के लिए कुहासा रास्ता नहीं छोड़ेगा क्या?

    पंचों की चट्टान पर राजाओं और रंगप्पाओं ने

    चालुक्यों के ज़माने के साक्ष्य एकत्रित किए हैं! फ़ैसला अपनी ओर

    पाने के लिए!

    अभियोग-पत्र जिस दिन मिला था उसी दिन मैंने कहा था

    उनके वाद में कुछ भी बल है नहीं

    आरोप तो सिद्ध होगा नहीं,

    यह दोष निरूपित होगा नहीं

    बहिन चलता हूँ मैं, इतिहास ने बुलवाया है मुझे

    (छोटू कन्हैया को तालाब की ओर मत जाने देना

    बहनोई को त्योहार पर बुलाना, बिटिया को फ्रॉक बनवा देना)

    मैंने बताया था—

    उस ज़माने में राम जैसे थे, आज महात्मा भी वैसे ही हैं

    आदर्श काव्यवस्तु मैंने बताया है अल्लूरि सीताराम राजु,

    वही मेरी ग़लती हुई है

    सब बचकर जा रहे थे

    छाया के समान पीछा करता इस युग जीवन से

    कहा जाता है—

    हठ मान मैं उसे काव्य में प्रतिबिंबित करता हूँ

    देख बहिन! इस पापी लोक को

    भूत में ही देखता है

    आगे क़दम बढ़ाने वालों के लिए

    रोड़े अनेक जमाता है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : शब्द से शताब्दी तक (पृष्ठ 68)
    • संपादक : माधवराव
    • रचनाकार : कुंदुर्ति आंजनेयलू
    • प्रकाशन : आंध्र प्रदेश हिंदी अकादमी
    • संस्करण : 1985

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए