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अभिनय

abhinay

अनुवाद : सुनीता डागा

सुचिता खल्लाळ

अन्य

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और अधिकसुचिता खल्लाळ

    जीवन के अभिनय से चिपककर रहते हुए

    लिखना चाहती हूँ मैं

    किसी चौखट से तुलता हुआ

    एक मुसव्वदा

    एक लंबी-सी अँधेरी सुरंग

    ख़त्म होती हुई-सी प्रतीत होती

    फिर भी होती है काफ़ी दूर

    दृश्यमान उजाले का आभासी लोलक

    अपनी पीठ अँधेरे की

    अँधेरे की ही अपनी आँखें भी

    तो पूरा दिन है

    और पूरी रात ही

    ऐसे झुटपुटे की संदिग्धता में

    अस्पष्ट अस्तित्व पर से धीमे-धीमे

    घूमती जाती हैं

    मौत की ठंडी उँगलियाँ

    फिर भी बढ़ रहे हैं क़दम सिर को नीचे झुकाए

    जीवन का ग़ुलाम होने की भाँति

    साधारण लोगों की तरह हम भी देते हैं साथ रास्ते का

    जीवन की बलि चढ़कर

    शक्तिपात से गुज़र चुके हम में नहीं है

    कोई अद्भुत मिसाल बनने की ताक़त या जुनून

    कालभ्रम

    दिशाभ्रम

    स्मृतिभ्रम की

    दग्ध गुत्थी सुलझाते हुए

    मत ढूँढ़ना आप ग़लती से भी मुझे घटनाओं या

    फलाने कथानक के किसी चरित्र में

    इस अजस्त्र शून्य में शून्य गति से ग़श खाते हुए

    शायद पाओगे आप मुझे

    किसी प्रतीक या मिथक के

    गूढ़तम अर्थ में

    मैं लिखना चाहती हूँ ठानकर

    ऐसा मुसव्वदा जिसे तौलना

    संभव हो किसी चौखट के लिए

    पर आप ग़लती से भी मत पढ़ना मुझे

    मेरी लिखी पंक्तियों में

    शायद मिल सकती हूँ मैं पंक्तियों के बीच

    रिक्त ब्रह्मांड में

    ऐसी किसी ख़ाली जगह को पढ़ते हुए

    ठिठक जाओ अगर आप

    केवल यही काफ़ी होगा मेरे लिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : सदानीरा
    • संपादक : अविनाश मिश्र
    • रचनाकार : सुचिता खल्लाळ
    • प्रकाशन : सदानीरा पत्रिका

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