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अब निर्णय आपको करना है

ab nirnay aapko karna hai

उमा शंकर चौधरी

अन्य

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उमा शंकर चौधरी

अब निर्णय आपको करना है

उमा शंकर चौधरी

यह कैसी विडंबना है

कि मैं अपनी भाषा में बोलता हूँ और लोग मुझ पर हँसते हैं

मैं अपनी भाषा में लिखता हूँ

और लोग मुझको हिक़ारत की निगाह से देखते हैं

वह समाजशास्त्री सूट-बूट पहन हैट लगा

घूमती है जैसलमेर की रेत की ढूह पर

तस्वीरें लेती है और अँग्रेज़ी भाषा में लिखती है

इस धरती के दुख-दर्द की कहानी

कि क्यों इस रेत में अपना घर बनाते हैं कीड़े

कि क्यों रेत पर गिरने वाले आँसू सूख जाते हैं छन्न से

वह घूरती है मुझको और कहती है

तुम हिंदी वाले क्या समझोगे

क्या लिख पाओगे यह दर्द

यह दर्द कोई छोटा-मोटा दर्द नहीं है, यूनिवर्सल है

मेरे सपने में आती है वह विदुषी अपने हाथ में लिए कई सम्मान

मैं लिखता हूँ और लोग हँसते हैं

मैं लिखता हूँ तो लोग कहते हैं दर्द को थोड़ा ऊँचा उठाओ

हो सके तो इस दर्द को यूनिवर्सल बनाओ

वह विदुषी बहुत ही लिजलिजे रूप में मुझे देखकर

मुझसे अपने होंठों को चबाकर कहती है

आप अँग्रेज़ी नहीं जानते हैं तो फिर आप ज़िंदा क्यों हैं?

क्या आपको डर नहीं लगता है यूँ खड़े होने में

वह कहती है नहीं है अधिकार, नहीं है अधिकार

तुम्हें यहाँ ज़िंदा रहने का

मैं चलता हूँ और सहमा रहता हूँ

मैं बोलता हूँ और डर जाता हूँ

मैं क़तार में खड़ा रहता हूँ और लोग क़तार तोड़ देते हैं

वे अँग्रेज़ी में बोलते हैं और मैं अपना नंबर पीछे कर लेता हूँ

पीछे, और पीछे और पीछे

मैं पीछे होता चला जाता हूँ और आगे बढ़ता हुआ आदमी

धीरे-धीरे अँग्रेज़ी में फुसफुसाता है

सब जंगली हैं जंगली

यह देश अजीब विडंबनाओं का देश है

सरकार का एक वरिष्ठ नेता कहता है कि

इस देश का प्रधानमंत्री उसे ही होना चाहिए

जो हिंदी बोलना जानता हो

दूसरी तरफ़ जो प्रधानमंत्री बनता है वह हिंदी जानते हुए भी

अपने पूरे कार्यकाल में एक शब्द भी हिंदी में नहीं बोलता है

बैंक में क़र्ज़ लेने जाता हूँ

हिंदी की रक्षा करने का बोर्ड पढ़ता हूँ

ख़ुश होता हूँ

लेकिन अँग्रेज़ी में लिखे पच्चीस पृष्ठों की शर्त दिल दहला देती है

एजेंट कहता है आप पढ़ और समझ लेंगे इन शर्तों को

तो ले ही नहीं पाएँगे क़र्ज़

हम इस अँग्रेज़ी से आपको नहीं आपके डर को भगाते हैं

एजेंट मचलता है और कहता है क्योंकि डर के आगे ही तो है... क़र्ज़।

बग़ल में खड़ा बैंक का दरबान

अपने पिचके गालों से निकालता है शब्द

अँग्रेज़ी लिखता है तभी तो किसान आत्महत्या करते हैं

बग़ल का आदमी मुझसे माँगता है क़लम

और मुझसे ही पूछता है आत्महत्या की ठीक-ठीक अँग्रेज़ी

मेरा दिमाग़ सुन्न हो जाता है

और पता नहीं क्यों तब अँग्रेज़ी का दूसरा ही शब्द

आने लगता है मुझे याद

मैं अपनी उपेक्षा, तिरस्कार और फ़रियाद लेकर

जाता हूँ प्रधानमंत्री के पास

प्रधानमंत्री कहते हैं यह देश तो अब ऐसे ही चलेगा

अब निर्णय आपको करना है

आप चाहें तो ताउम्र बोलते रहें हिंदी और पागल हो जाएँ

या फिर आप हो जाएँ एकदम से चुप

एकदम चुप, बुत से भी ज़्यादा

मैं जाने लगता हूँ तो अपने सुरक्षाकर्मी से

मुझे बुलवाते हैं प्रधानमंत्री

बैठाते हैं और समझाते हैं आप समझना क्यों नहीं चाहते

हम आपको चमकीली दुनिया दे रहे हैं

और आप लिथड़े रहना चाहते हैं कीचड़ में

ग़रीब कहाँ नहीं हैं तो क्या अमीर ख़त्म कर लें अपनी ज़िंदगी

जिनके पास पैसे हैं उन्होंने क्या गुनाह किया है

कभी सोचा है आपने

प्रधानमंत्री मुझसे बात करते हैं हिंदी में

और कहते हैं यह मत समझिएगा कि मुझे हिंदी नहीं आती

लेकिन हिंदी से अब ज़िंदगी चल तो नहीं सकती

और अब ज़माना वह नहीं रहा

अब आप अपने मन की करते रहेंगे तो सच मानिए

सिर्फ़ किनारे ही नहीं कर दिए जाएँगे बल्कि सड़ा दिए जाएँगे

मैं वहाँ से उठ जाता हूँ

तब प्रधानमंत्री मेरे कंधे पर रख देते हैं हाथ

कहते हैं ‘यंग मेन नाव दिस इज़ नॉट योर कंट्री’

प्रधानमंत्री नज़रें झुका लेते हैं और कहते हैं

किसी से कहना मत कि मैंने आज हिंदी में बात की है

मैं प्रधानमंत्री के सामने से बाहर निकलता हूँ

ऐसे जैसे अपने ही देश से बेगाने की तरह बाहर निकल रहा हूँ

मैं निकलता हूँ और तभी

गाँव में बैठा मेरा बटेसर चाचा चीख़कर कहता है

नहीं होगी यहाँ कोई क्रांति

कुछ नहीं बदलेगा, कुछ नहीं बदलेगा

सबको बेमौत मरना है यहाँ

साले चाहे ऐसे मरो या फिर वैसे।

स्रोत :
  • रचनाकार : उमाशंकर चौधरी
  • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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