अब केस के आई रामराज

ab kes ke aai ramraj

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

अब केस के आई रामराज

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

परजा कै मासन, परजा की खातिर, परजा के हाथे मा,

परजै पहिरावै मुकुट आज जिउ चाहे जेकरे माथे मा।

हमहीं काजी, हमहीं मुल्ला, हमहीं पंचउ परधान बना

किसमत कै डोरी हाथे मा हमहीं आपन भगवान बना।

का केउ के पयताने बइठा अब चँवर डोलाई रामराज?

अब केस के आई रामराज?

जमीदार कै जोर जुलुम, अँगरेजन के खुली लूट,

जबरा के मारे वहि जुग मा रोवइ का केका रही छूट।

जे बरा रहे सब गे बुताइ जे तपा रहे ते अस्त भए

जे छाती पर असवार रहे अपनी करनी से पस्त भए।

का बना मदारी गली गली डुगडुगी बजाई रामराज?

अब केस के आई रामराज?

अब ऊँच-नीच कै भेद कहाँ सब निरबल सबल समान भए,

वह सेर मुहम्मद का हराइ झिंगुरी महतौ परधान भए।

ना केउ की हरी बेगारी मा ना केउ की ठकुरसोहाती मा

केउ की छाती पर मूँग दरै बा कुब्बत केकरी छाती मा।

का कैंची लइके बड़ा छोट कै भेद मिटाई रामराज?

अब केस के आई रामराजॉ?

ढेबरी की कठिन पढ़ाई मा आँखी कै जोती जात रही,

दादा लूकी लै खात रहे माई अँधियारे खात रही।

डेहरी से लैके ओबरी तक अब सगरौ बिजुरी बरै लाग

मनई के कहै भइँस बइठी उजियारे पागुर करै लाग।

का जना जना की आँखी मा अब दिया देखाई रामराज?

अब केस के आई रामराज?

भोरे से पुर नाधे-नाधे तरुआ कै चाम खिआइ जाए,

फाटड बेवाइ जब गोड़े मा जइसे कँकरी भेहलाइ जाए।

अत्र नहर चली, नलकूप चला, बारहौ महीना तरी रहे

जौने खेते मा धूर उड़ी अब जेठौ मां हरियरी रहै।

अब का हाथे मा लोटा लै गोहूँ टोंटियाई रामराज?

अब केस के आई रामराज?

बस्तर बिन देंह उघार रही, रोटी के लाला परा रहा,

जब इहाँ बिदेसी राज रहा, जीभी पर ताला परा रहा।

अब सब अजाद, सब मनमानी, बेसुर के राग सुनाइ रहे

अपनी करनी कै दोख दै भगवानौ का गरिआइ रहे।

सब बेलगाम, केउ के मुह कै ढकना बनि जाई रामराज?

अब केस के आई रामराज?

सूई के कहै विमान तलुक अब इहीं देस मा बनै लाग,

यहिं जुग के पाँच सवारन मा दुनिया हमहूँ का गनै लाग।

अगिन कि सौ-सौ जोजन तक दुसमन का राख बनाइ देइ

हम ओकर लेई आँखि काढ़ि जे हमका आँख देखाइ देइ।

हमरे विकास के रंग देखि सब कहैं दोहाई रामराज?

अब केस के आई रामराज?

आपन-आपन करतब चेतै, आपन आपन अधिकार लेइ,

जे करै मसक्कत तन-मन से यहि जुग मा बाजी मारि लेइ।

जे आलस औंघाई मा झिलगा मा झूलत परा अहै

ओकरी जिनगी के का भरोस जीते जी मानौ मरा अहै।

जे मरा परा ओकरी देहीं का जिउ पहिराई रामराज?

अब केस के आई रामराज?

स्रोत :
  • पुस्तक : माटी औ महतारी (पृष्ठ 49)
  • रचनाकार : आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
  • प्रकाशन : अवधी अकादमी

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