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आयु

aayu

अनुवाद : राजेंद्र प्रसाद मिश्र

रमाकांत रथ

अन्य

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और अधिकरमाकांत रथ

    बिना कोई सवाल किए

    सौंप दिया तुम्हें अपना जीवन,

    सौंप देना अति स्वाभाविक था क्योंकि तुम

    गोद में ले लेती थीं मौत की तरह

    जबकि मौत का भय, वीभत्स चेहरा

    कहीं फेंक दिया था तुमने।

    तुम्हारे पास हमेशा नीला होता था आकाश,

    धूप हमेशा मुलायम,

    हमेशा कुछ सफ़ेद बादल,

    हमेशा जंगल में निर्वासित लोगों के

    लौटते समय उनकी उन्मुक्त हँसी,

    पक्षियों का कलरव,

    सहसा जीवित पर्वतों की

    बोझिल उसाँसें।

    मैं समझ नहीं सका

    तुम किससे बनी हो,

    हमारे असंख्य भय में छिपे साहस से या

    बंदूक की नली पर चमचमाती चाँदनी से?

    हत्यारे की आँखों की कोर में चमकते आँसू से?

    क्या तुम वह समय हो जो पृथ्वी के

    बरामदे में खड़ा था?

    रक्त से धुलते समय सारी सड़कें?

    या इस्पात और शिशुओं की हड्डियों से

    मज़बूत की गई दीवारें?

    मैंने कुछ नहीं पूछा, सिर्फ़ देखा

    जहाँ तक निगाह जा रही थी

    हर जगह फूल ही फूल थे,

    प्रत्येक कंकड़ मणि बन गया

    और प्रत्येक सड़ा शव

    रुककर पोंछ देता

    बदन से कीचड़,

    हर झूठ जलकर राख हो गया

    धूल में मिल गया प्रत्येक हिंसक हाथ,

    प्रत्येक यंत्रणा लगी

    स्मृति-विभ्रम के सिवा और कुछ भी नहीं।

    साँस बन तुम्हारे अंदर खिंचे चले जाते समय

    कहीं कोई अमंगल सूचना नहीं दिखी,

    असमय उल्लू की आवाज़ सुनाई नहीं दी

    ना ही श्वान और सियार ही बोले,

    बल्कि कुछ दिनों के सपने ही सच हुए,

    मरुथल श्यामल दिखा,

    पृथ्वी के समस्त अनाथाश्रमों से

    चले गए सबके सब बच्चे।

    जेलों के पहरेदार चले गए सारे जेलों को लेकर,

    मैंने देखा एक भी सफ़ेद बाल नहीं

    तुम्हारे सिर पर,

    एक भी घाव नहीं तुम्हारे अद्भुत बदन पर।

    मैं कैसे रह सकता था बिना मरे

    तुम्हारी युग-युग से तकती

    आँखों के इशारे के बाद?

    तुम्हें छूते ही मुझे लगा

    असंख्य प्राचीन यात्राओं की उत्तेजना

    पुनः जल उठी है

    मेरे मांस में, शिरा-प्रशिराओं में।

    मैं एक जहाज़-सा बह रहा हूँ

    तुम्हारे तटहीन अंतरंग समुद्र में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : तैयार रहो मेरी आत्मा (पृष्ठ 65)
    • रचनाकार : रमाकांत रथ
    • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन
    • संस्करण : 1998

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