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आओ

aao

महेश वर्मा

 

कोई दिन ऐसा नहीं आएगा जिसकी धूप
आज की धूप में शामिल नहीं है
आने वाले दिनों की हवा कुछ इस हवा में भी है
कुछ इस धूल में अगले बरस की धूल
ऐसे ही घंटे का अनुरणन1घंटे का अनुरणन महाकवि विनोद कुमार शुक्ल की पंक्ति है उनसे क्षमापूर्वक।
इसमें आगे की आराधनाओं की भी ध्वनियाँ हैं
कि कोई किसी भविष्य के मंदिर में प्रवेश करेगा।

आज की सुबह में भविष्य के पक्षी चहचहा रहे हैं
इस इस्तिरी की हुई क़मीज़ में भविष्य की कलफ़ है
आज का भोजन करके आचार्य भविष्य की सींक से निकाल रहे हैं
दाँतों में फँसा दाना।

इसी चाँद के पास है भविष्य के प्रेमियों का उन्माद
इसी समुद्र के पास भविष्य की गर्जना है और भविष्य का नमक
यह पर्वत बहुत दिनों तक भविष्य का भी पर्वत रहेगा
हस्तरेखाशास्त्री की हथेली पर नहीं आज की ज़मीन पर।

भविष्य की ध्वनियाँ और चित्र
इस कविता में आओ।

स्रोत :
  • पुस्तक : धूल की जगह (पृष्ठ 35)
  • रचनाकार : महेश वर्मा
  • प्रकाशन : राजकमल प्रकाशन
  • संस्करण : 2018

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