Font by Mehr Nastaliq Web

आज से

aaj se

अनुवाद : शंकर लाल पुरोहित

पीतांबर तराई

अन्य

अन्य

और अधिकपीतांबर तराई

    मुझे पूछें समगोत्रीगण

    भात से कितनी दूर भारत

    माप नहीं पाते तभी तो

    पचास बरस हुए

    सिंहासन पर सियार

    बैठा है सिंहवेश में

    बैठा रहे

    अब उतरने को मत कहना।

    अपने-आप अंत नहीं होता

    निठुर गोपन वास

    विषपान की बेला

    अपने-अपने माथे पर हाथ रख

    विनाश होने का दुखद दुर्योग

    तैयार किया छाती में

    कृपणता के निषिद्ध कमरे में

    कसकर थामे हैं आँसू के दाग़

    विमर्ष

    भाग्य हमारा

    अब किस की निन्दा करें।

    भात में भाग माँग पचास साल

    सब रिश्तेदार

    भारत में भागीदार

    कह पाए एक बार,

    खोजते रहे पेट के लिए भात

    एक दिन नहीं खोजा प्राणों में भारत।

    बात यदि इतनी सीधी है,

    अब भेजना होगा

    मुँह, होंठ, आँख-कान

    योद्धापन शुरू में,

    भेजनी होगी हृदय की आख़री अमानत

    फाँस, फार्स, फरसे की जयनाद

    कूट-कपट की सभा के अंदर।

    साफ़-साफ़ कहना होगा

    ईश्वर, सरकार

    जिसे, अभिनय जितने प्रकार

    करने हैं, ले लो।

    बात अब सीधी

    सीख चुके हैं एक पंक्ति में

    मंत्र उच्चारण

    और तीर चलाना।

    अब भात से भारत कितनी दूर

    ज़रूरत नहीं मुझे पूछने की

    हे समप्रेमीगण!

    जैसे घास फूलों पर

    बूँद-बूँद ओसकण

    वैसे अपनी छाती में देखें

    स्वतः ही चिप चुकी

    हृदय से महकती

    एक पंक्ति उत्तर में

    एक भोर बेला में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : बीसवीं सदी की ओड़िया कविता-यात्रा (पृष्ठ 311)
    • संपादक : शंकरलाल पुरोहित
    • रचनाकार : पीतांबर तराई
    • प्रकाशन : साहित्य अकादेमी
    • संस्करण : 2009

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए