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आदि से अंत तक

aadi se ant tak

जुवि शर्मा

अन्य

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जुवि शर्मा

आदि से अंत तक

जुवि शर्मा

और अधिकजुवि शर्मा

    अनर्गल सपने देखना

    फिर उनके तार्किक संदर्भों

    द्वारा समीक्षा करना

    आंतरिक परकोटे में

    कभी अनंत पीड़ा

    कभी अर्थहीन-सी मुस्कुराहटें

    जैसे जामुन के पेड़ से

    आम के गिरने की प्रतीक्षा करना

    जब कुछ हाथ लगे

    घंटों रोते रहना

    एक बार अपने सारे दुखों को

    सिलबट्टे पर

    बिल्कुल बारीक होने तक पीसा था

    मुझे लगा शायद ख़त्म हो जाएँगे

    आभासी चीज़ें सुख देती हैं

    घर के आख़िरी कोने वाली दीवार

    वेश बदलकर मेरी माँ बन जाती थी

    अपने आँचल से

    गीले गाल पोंछती

    अपने सीने में मेरा मुँह दबाकर

    दोनों हाथों से

    मुझ पर चुंबन बरसाती

    माँ के अंग से आती

    कच्चे दूध वाली महक

    मैं फिर जीवंत हो

    बुनने लगती एकांत

    कोई नया स्वप्न

    सैकड़ों बवंडर धूमकेतु से

    मेरी तरफ़ रहे है

    और मैं लिख रही हूँ

    लेकिन क्या?

    अनगिनत कविताएँ

    हज़ारों कहानियाँ

    क्योंकि मुझे भय नहीं है

    मैं फिर एकांतिक क्षणों में

    स्वयं को सुपुर्द कर दूँगी

    उसी दीवार को

    आदि से अंत तक...

    स्रोत :
    • रचनाकार : जुवि शर्मा
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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