आ असिल पूत ऊ माटी कै

aa asil poot uu mati kai

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

आ असिल पूत ऊ माटी कै

आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'

जे समझै एकै पीर, पीर कै कोसिस भै उपचार करै,

जे अपने खून पसीना से एकै सोरह सिंगार करै,

अपुना बत्ती अस बरत चलइ दुसरे का उजियार करै

जे गाँव गली मा गिरत परत दुखियन का बेड़ा पार करै।

मेहनत के देवता का पूजै, लावै भभूत माटी कै,

असिल पूत माटी कै।

बाँटै सनेस बस जोरै का ना कपट कौनौ चाल रहै,

ना गुर चिउटा, ना लिबिर लिबिर, ना केउ से फूला गाल रहै,

लछिमी से कोसन दूर परा चाहे केतनौ कंगाल रहै

धन से दूबर, तन से पातर, मुल मन से मालामाल रहै।

केउ छोट बड़ा, ना ऊँच नीच हरि लेइ छूत माटी कै,

असिल पूत माटी कै।

जे मरै देस की रच्छा मा ओकै आरती उतारि लेइ,

जे ठोंकै ताल लड़ै खातिर ओकै ओंघाई झारि लेइ,

दुसमन जब घुइरै आँख, आँख कै पुतरी तलुक निकारि लेइ

चौकस चौबंद रहै हरदम रन मा बाजी मारि लेइ।

जिउ दै जोगवइ जर्रा-जर्रा सूत-सूत माटी कै,

असिल पूत माटी कै।

सरगौ से बढ़ि के माना थै माटी महतारी का,

नंदन बन से उप्पर समझै अपनी केसर की क्यारी का,

मुरझाइ पावै फूल कहूँ, कौनौ अपनी फुलवारी का

यहि खातिर ना परवाह करइ कौनौ हवा बयारी का।

रखवार बना तन-मन धन से, बस अनाहूत माटी कै,

असिल पूत माटी कै।

सबकै दुख आपन दुख समझे सबके गोहराए धाइ जाय,

सबकी सेवा मा जुटा रहइ सबके उप्पर छाई जाय,

सुख-दुख मा एक समान रहै ना बूड़इ ना उतिराइ जाय

देसवा की खातिर जूझि मरै दरजा सहीद कै पाइ जाय।

बसि जाइ पुतरियन मा सबकी बनि देवदूत माटी कै,

असिल पूत माटी कै।

जहाँ रहै मनि अस बरसै ओकरे पीछे संसार चलै,

जौनी कैती चितै देइ बस महरानी कै धार चलै,

जेकरी पीठी पर हाथ धरै छिन माँ रोवा झार चलै

अपनी करनी से उरिन होइ सबकै विपदा टार चलै।

माटी कै सिरदा, जाना थै महिमा अकूत माटी कै,

असिल पूत माटी कै।

स्रोत :
  • पुस्तक : माटी औ महतारी (पृष्ठ 37)
  • रचनाकार : आद्या प्रसाद 'उन्मत्त'
  • प्रकाशन : अवधी अकादमी

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