बाल महाभारत : विराट का भ्रम

baal mahabharat virat ka bhram

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

बाल महाभारत : विराट का भ्रम

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

रोचक तथ्य

प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

त्रिगर्त-राजा सुशर्मा पर विजय प्राप्त करके राजा विराट नगर में वापस आए, तो पुरवासियों ने उनका धूमधाम से स्वागत किया। अंत:पुर में राजकुमार उत्तर को पाकर राजा ने पूछताछ की तो स्त्रियों ने बड़े उत्साह के साथ बताया कि कुमार कौरवों से लड़ने गए हैं।

राजा यह सुनकर एकदम चौंक उठे। उनके विशेष पूछने पर स्त्रियों ने कौरवों के आक्रमण आदि का सारा हाल सुनाया। यह सब सुनकर राजा का मन चिंतित हो उठा।

राजा को इस प्रकार शोकातुर होते देखकर कंक ने उन्हें दिलासा देते हुए कहा—“आप राजकुमार की चिंता करें। बृहन्नला सारथी बनकर उनके साथ गई हुई है।”

कंक इस प्रकार बातें कर ही रहे थे कि इतने में उत्तर के भेजे हुए दूतों ने आकर कहा—“राजन्! आपका कल्याण हो! राजकुमार जीत गए। कौरव-सेना तितर-बितर कर दी गई है। गायें छुड़ा ली गई हैं।”

यह सुनकर विराट आँखें फाड़कर देखते रह गए। उन्हें विश्वास ही होता था कि अकेला उत्तर कौरवों को जीत सकेगा! पुत्र की विजय हुई, यह जानकर विराट, आनंद और अभिमान के मारे फूले समाए। उन्होंने दूतों को असंख्य रत्न एवं धन पुरस्कार के रूप में देकर ख़ूब आनंद मनाया। इसके बाद राजा ने प्रसन्नता से अंत:पुर में जाकर कहा—“सैरंध्री चौपड़ की गोटें तो ज़रा ले आओ। चलो कंक से दो-दो हाथ चौपड़ खेल लें। आज ख़ुशी के मारे मैं पागल-सा हुआ जा रहा हूँ। मेरी समझ में नहीं रहा है कि मैं अपना आनंद कैसे व्यक्त करूँ!”

दोनों खेलने बैठे। खेलते समय भी बातें होने लगीं। “देखा राजकुमार का शौर्य? विख्यात कौरव-वीरों को मेरे बेटे ने अकेले ही लड़कर जीत लिया!” विराट ने कहा।

“नि:संदेह आपके पुत्र भाग्यवान हैं, नहीं तो बृहन्नला उनकी सारथी बनती ही कैसे?” कंक ने कहा। विराट झुँझलाकर बोले—“आपने भी क्या यह बृहन्नला-बृहन्नला की रट लगा रखी है? मैं अपने कुमार की विजय की बात कर रहा हूँ और आप उसके सारथी की बड़ाई करने लगे।”

युधिष्ठिर ने अब बृहन्नला का नाम लेकर जैसे ही कुछ कहना चाहा, राजा से रहा गया। अपने हाथ का पासा युधिष्ठिर (कंक) के मुँह पर दे मारा। पासे की मार से युधिष्ठिर के मुख पर चोट लग गई और ख़ून बहने लगा।

इतने में द्वारपाल ने आकर ख़बर दी कि राजकुमार उत्तर बृहन्नला के साथ द्वार पर खड़े हैं। राजा से भेंट करना चाहते हैं। सुनते ही विराट जल्दी से उठकर बोले—“आने दो! आने दो!!” कंक ने इशारे से द्वारपाल को कहा कि सिर्फ़ राजकुमार को लाओ, बृहन्नला को नहीं। युधिष्ठिर को भय था कि कहीं राजा के हाथों उनको जो चोट लगी है, उसे देखकर अर्जुन ग़ुस्से में कोई गड़बड़ी कर दे। यही सोच उन्होंने द्वारपाल को ऐसा आदेश दिया। राजकुमार उत्तर ने प्रवेश करके पहले अपने पिता को नमस्कार किया। फिर वह कंक को प्रणाम करना ही चाहता था कि उनके मुख से ख़ून बहता देखकर चकित रह गया। उसे अर्जुन से मालूम हो चुका था कि कंक तो असल में युधिष्ठिर ही हैं।

उसने पूछा—“पिता जी, इनको किसने यह पीड़ा पहुँचाई है?”

विराट ने कहा—“बेटा! क्रोध में मैंने चौपड़ के पासे फेंक मारे। क्यों, तुम उदास क्यों हो गए?”

पिता की बात सुनकर उत्तर काँप गया। विराट कुछ समझ ही सके कि बात क्या है। उत्तर ने आग्रह किया, तो उन्होंने कंक के पाँव पकड़कर क्षमा-याचना की। इसके बाद उत्तर को गले लगा लिया और बोले—“बेटा, बड़े वीर हो तुम!”

उत्तर ने कहा—“पिता जी, मैंने कोई सेना नहीं हराई। मैं तो लड़ा भी नहीं।”

बड़ी उत्कंठा के साथ राजा ने पूछा—“कौन था वह वीर? कहाँ है वह? बुला लाओ उसे।”

राजकुमार ने कहा—“पिता जी मेरा विश्वास है कि आज या कल वह अवश्य प्रकट होंगे।”

थोड़ी देर तक तो पांडवों ने सोचा कि अब ज़्यादा विवाद करना और अपने को छिपाए रखना ठीक नहीं है। यह सोचकर अर्जुन ने पहले राजा विराट को और बाद में सारी सभा को अपना असली परिचय दे दिया। लोगों के आश्चर्य और आनंद का ठिकाना रहा। सभा में कोलाहल मच गया। राजा विराट का हृदय कृतज्ञता, आनंद और आश्चर्य से तरंगित हो उठा। विराट ने कुछ सोचने के बाद अर्जुन से आग्रह किया कि आप राजकन्या उत्तरा से ब्याह कर लें। अर्जुन ने कहा—“राजन्! आपकी कन्या को मैं नाच और गाना सिखाता रहा हूँ। मेरे लिए वह बेटी के समान है। इस कारण यह उचित नहीं है कि मैं उसके साथ ब्याह करूँ। हाँ, यदि आपकी इच्छा हो, तो मेरे पुत्र अभिमन्यु के साथ उसका ब्याह हो जाए।”

राजा विराट ने यह बात मान ली। इसके कुछ समय बाद दुर्योधन के दूतों ने आकर युधिष्ठिर से कहा—“कुंती-पुत्र! महाराज दुर्योधन ने हमें आपके पास भेजा है। उनका कहना है कि उतावली के कारण प्रतिज्ञा पूरी होने से पहले अर्जुन पहचाने गए हैं। इसलिए शर्त के अनुसार आपको बारह बरस के लिए और वनवास करना होगा।”

इस पर युधिष्ठिर हँस पड़े और बोले—“दूतगण शीघ्र ही वापस जाकर दुर्योधन को कहो कि वह पितामह भीष्म और जानकारों से पूछकर इस बात का निश्चय करे कि अर्जुन जब प्रकट हुआ था, तब प्रतिज्ञा की अवधि पूरी हो चुकी थी या नहीं। मेरा यह दावा है कि तेरहवाँ बरस पूरा होने के बाद ही अर्जुन ने धनुष की टंकार की थी।”

वीडियो
This video is playing from YouTube

Videos
This video is playing from YouTube

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

स्रोत :
  • पुस्तक : बाल महाभारत कथा (पृष्ठ 56)
  • रचनाकार : चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
  • प्रकाशन : एनसीईआरटी
  • संस्करण : 2022
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Lorem ipsum dolor sit amet, consectetur adipiscing elit. Morbi volutpat porttitor tortor, varius dignissim.

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY