बाल महाभारत : अंबा और भीष्म

amba aur bheeshm

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

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बाल महाभारत : अंबा और भीष्म

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी

नोट

प्रस्तुत पाठ एनसीईआरटी की कक्षा सातवीं के पाठ्यक्रम में शामिल है।

सत्यवती के पुत्र चित्रांगद बड़े ही वीर, परंतु स्वेच्छाचारी थे। एक बार किसी गंधर्व के साथ युद्ध हुआ, उसमें वह मारे गए। उनके कोई पुत्र था, इसलिए उनके छोटे भाई विचित्रवीर्य हस्तिनापुर की राजगद्दी पर बैठे विचित्रवीर्य की आयु उस समय बहुत छोटी थी, इस कारण उनके बालिग होने तक राज-काज भीष्म को ही सँभालना पड़ा।

जब विचित्रवीर्य विवाह के योग्य हुए, तो भीष्म को उनके विवाह की चिंता हुई। उन्हें ख़बर लगी कि काशिराज की कन्याओं का स्वयंवर होने वाला है। यह जानकर भीष्म बड़े ख़ुश हुए और स्वयंवर में सम्मिलित होने के लिए काशी रवाना हो गए।

देश-विदेश के अनेक राजकुमार उस स्वयंवर राजकुमार उस में भाग लेने के लिए आए थे। राजपुत्रियों को पाने के लिए आपस में बड़ी स्पर्धा थी।

क्षत्रियों में भीष्म की प्रतिज्ञा की प्रतिष्ठा अद्वितीय थी। उनके महान त्याग और भीषण प्रतिज्ञा का हाल सब जानते थे। इसलिए जब वह स्वयंवर-मंडप में प्रविष्ट हुए, तो राजकुमारों ने सोचा कि वह सिर्फ़ स्वयंवर देखने के लिए आए होंगे। परंतु जब स्वयंवर में सम्मिलित होने वालों में भीष्म ने भी अपना नाम दिया तो अन्य कुमारों को निराश होना पड़ा। उनको क्या पता था कि दृढव्रती भीष्म अपने लिए नहीं, वरन् अपने भाई के लिए स्वयंवर में सम्मिलित हुए हैं।

सभा में खलबली मच गई। चारों ओर से भीष्म पर फब्तियाँ कसी जाने लगीं—“माना कि भरतवंशी भीष्म बड़े बुद्धिमान और विद्वान हैं, स्वयंवर से इन्हें क्या मतलब? इनके प्रण का क्या हुआ? जीवनभर ब्रह्मचारी रहने की इन्होंने जो प्रतिज्ञा की थी, क्या वह झूठी थी?” इस भाँति सब राजकुमारों ने भीष्म की हँसी उड़ाई, यहाँ तक कि काशिराज की कन्याओं ने भी भीष्म की तरफ़ से दृष्टि फेर ली और उनकी अवहेलना-सी करके आगे की ओर चल दीं।

भीष्म इस अवहेलना को सह सके। उन्होंने सभी राजकुमारों को हराकर तीनों राजकन्याओं को बलपूर्वक रथ पर बैठा लिया और हस्तिनापुर को चल दिए। सौभदेश का राजा शाल्व बड़ा वीर था। काशिराज की सबसे बड़ी कन्या अंबा उस पर अनुरुक्त थी और उसको मन-ही-मन अपना पति मान चुकी थी। शाल्व ने भीष्म के रथ का पीछा किया और उसको रोकने का प्रयत्न किया। इस पर भीष्म और शाल्व के बीच घोर युद्ध छिड़ गया। भीष्म ने उसे हरा दिया, किंतु काशिराज की कन्याओं की प्रार्थना पर उसे जीवित ही छोड़ दिया।

भीष्म काशिराज की कन्याओं को लेकर हस्तिनापुर पहुँचे। विचित्रवीर्य के विवाह की सारी तैयारी हो जाने के बाद जब कन्याओं को विवाह मंडप में ले जाने का समय आया तो काशिराज की बड़ी बेटी अंबा एकांत में भीष्म से बोली—“गांगेय, मैंने अपने मन में सौभदेश के राजा शाल्व को अपना पति मान लिया था। इसी बीच आप मुझे बलपूर्वक यहाँ ले आए। मेरे मन की बात जानने के बाद आप मेरे बारे में अब जो उचित समझें, करें।”

भीष्म को अंबा की बात जँची। उन्होंने अंबा को उसकी इच्छानुसार उचित प्रबंध के साथ शाल्व के पास भेज दिया और अंबा की दोनों बहनों—अंबिका और अंबालिका—का विचित्रवीर्य के साथ विवाह करा दिया।

अंबा अपने मनोनीत वर सौभराज शाल्व के पास गई और सारा वृत्तांत कह सुनाया। उसने कहा—“राजन्! मैं आपको ही अपना पति मान चुकी हूँ। मेरे अनुरोध से भीष्म ने मुझे आपके पास भेजा है। आप मुझे अपनी पत्नी स्वीकार कर लें।”

पर शाल्व माना। उसने अंबा से कहा—“सारे राजकुमारों के सामने भीष्म ने मुझे युद्ध में पराजित किया और तुम्हें बलपूर्वक हरण करके ले गए। इतने बड़े अपमान के बाद मैं तुम्हें कैसे स्वीकार कर सकता हूँ। तुम्हारे लिए अब उचित यही है कि तुम भीष्म के पास जाओ और उनकी सलाह के मुताबिक़ ही काम करो।”

बेचारी अंबा हस्तिनापुर लौट आई और भीष्म को सारा हाल कह सुनाया। उन्होंने विचित्रवीर्य से कहा—“वत्स, राजा शाल्व अंबा को स्वीकार नहीं करता। इससे विदित होता है कि उसकी इच्छा अंबा को पत्नी बनाने की नहीं थी। अब उसके साथ तुम्हारा ब्याह करने में कोई आपत्ति नहीं रही है। पर विचित्रवीर्य अंबा के साथ ब्याह करने को राजी हुए।

बेचारी अंबा इधर की रही उधर की। कोई और रास्ता देख वह भीष्म से बोली—“गांगेय, मैं तो दोनों ओर से ही गई। मेरा कोई भी सहारा रहा। आप ही मुझे हर लाए थे, अतः अब आपका यह कर्तव्य है कि आप मेरे साथ ब्याह कर लें।”

भीष्म ने उसकी बात ध्यान से सुनी और अपनी प्रतिज्ञा की याद दिलाकर बोले—“अपनी प्रतिज्ञा तो मैं नहीं तोड़ सकता।” उन्होंने अंबा की परिस्थिति समझकर विचित्रवीर्य से दुबारा आग्रह किया, पर वह माना। भीष्म ने अंबा को फिर समझाया और कहा कि सौभराज शाल्व के ही पास जाओ और एक बार फिर प्रार्थना करो। लाचार अंबा फिर शाल्व के पास गई और उसकी बहुत मिन्नतें कीं, लेकिन दूसरे की जीती हुई कन्या को स्वीकार करने से सौभराज ने साफ़ इंकार कर दिया। अंबा इस प्रकार छह साल तक हस्तिनापुर और सौभदेश के बीच ठोकरें खाती फिरी। उसने अपने इस सारे दुख का कारण भीष्म को ही समझा। उन पर उसे बहुत क्रोध आया और प्रतिहिंसा की आग उसके मन में जलने लगी।

भीष्म से बदला लेने की इच्छा से वह कई राजाओं के पास गई और उनको अपना दुखड़ा सुनाया। भीष्म से युद्ध करके उनका वध करने की उसने राजाओं से प्रार्थना की, पर राजा लोग तो भीष्म के नाम से ही डरते थे। किसी में इतना साहस था कि भीष्म से युद्ध करे। क्षत्रियों से एकदम निराश होकर अंबा ने तपस्वी ब्राह्मणों की शरण ली। तपस्वियों ने कहा—“बेटी, तुम परशुराम के पास जाओ। वे तुम्हारी इच्छा अवश्य पूरी करेंगे।” तब ऋषियों की सलाह पर अंबा परशुराम के पास गई।

अंबा की करुण कहानी सुनकर परशुराम का हृदय पिघल गया। उन्होंने दयार्द्र स्वर में कहा—“काशिराज-कन्ये, तुम मुझसे क्या चाहती हो?”

अंबा ने कहा—“ब्राह्मण वीर, मेरी प्रार्थना केवल यही है कि आप भीष्म से युद्ध करें। मैं आपसे भीष्म के वध की भीख माँगती हूँ।”

परशुराम को अंबा की प्रार्थना पसंद आई। बड़े उत्साह के साथ वह भीष्म के पास गए और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। दोनों कुशल योद्धा थे और धनुष-विद्या के जानकार भी। दोनों ही जितेंद्रिय और ब्रह्मचारी थे समान योद्धाओं की टक्कर थी। कई दिनों तक युद्ध होता रहा, फिर भी हार जीत का निश्चय हो सका। अंत में परशुराम ने हार मान ली और उन्होंने अंबा से कहा—“जो कुछ मेरे वश में था, कर चुका। अब तुम्हारे लिए यही उचित है कि तुम भीष्म ही की शरण लो।”

पर अंबा ऐसी बातों से कब विचलित होने वाली थी? उसने वन में जाकर फिर तपस्या शुरू की और तपोबल से स्त्री रूप छोड़कर पुरुष बन गई और उसने अपना नाम शिखंडी रख लिया।

जब कौरवों और पांडवों के बीच कुरुक्षेत्र के मैदान में युद्ध हुआ, तो भीष्म के विरुद्ध लड़ते समय शिखंडी रथ के आगे बैठा था और अर्जुन ठीक उसके पीछे। ज्ञानी भीष्म को यह बात मालूम थी कि अंबा ही शिखंडी का रूप धारण किए हुए है। इसलिए उन्होंने उस पर बाण चलाना अपनी वीरोचित प्रतिष्ठा के विरुद्ध समझा। शिखंडी को आगे करके अर्जुन ने भीष्म पितामह पर हमला किया और अंत में उन पर विजय प्राप्त की। जब भीष्म आहत होकर पृथ्वी पर गिरे, तब जाकर अंबा का क्रोध शांत हुआ।

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स्रोत :
  • पुस्तक : बाल महाभारत कथा (पृष्ठ 7)
  • रचनाकार : चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
  • प्रकाशन : एनसीईआरटी
  • संस्करण : 2022
हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों का व्यापक शब्दकोश : हिन्दवी डिक्शनरी

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‘हिन्दवी डिक्शनरी’ हिंदी और हिंदी क्षेत्र की भाषाओं-बोलियों के शब्दों का व्यापक संग्रह है। इसमें अंगिका, अवधी, कन्नौजी, कुमाउँनी, गढ़वाली, बघेली, बज्जिका, बुंदेली, ब्रज, भोजपुरी, मगही, मैथिली और मालवी शामिल हैं। इस शब्दकोश में शब्दों के विस्तृत अर्थ, पर्यायवाची, विलोम, कहावतें और मुहावरे उपलब्ध हैं।

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