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स्तुति (चार)

stuti (chaara)

मलिक मोहम्मद जायसी

अन्य

अन्य

मलिक मोहम्मद जायसी

स्तुति (चार)

मलिक मोहम्मद जायसी

और अधिकमलिक मोहम्मद जायसी

    आदि सोइ बरनौं बड़ राजा। आदिहुँ अंत राज जेहि छाजा॥

    सदा सरबदा राज करेई। जेहिं चहइ राज तेहिं देई॥

    छत्रहि अछत निछत्रहि छावा। दोसर नाहिं जो सरबरि पावा॥

    परबत ढाह देख सब लोगू। चाँटिहि करइ हस्ति कर जोगू॥

    बज्रहि तिन कै मारि उड़ाई। तिनहि बज्र की देइ बड़ाई॥

    ताकर कीन्ह जानइ कोई। करै सोई जो मन चित होई॥

    काहू भोग भुगुति सुख सारा। काहू भीख भवन दु:ख भारा॥

    सबइ नास्ति वह अस्थिर अइस साज जेहिं केर।

    एक साजइ अउ भाँजइ चहइ सँवारइ फेर॥

    आरंभ में मैं उसी सम्राट का वर्णन करता हूँ, सृष्टि के आदि से अंत तक जिसका राज्य सुशोभित हो रहा है। सदा सब काल में वही राज्य करता है, और जिसे चाहता है उसे राज्य देता है। वह छत्रधारी को बिना छत्र का कर देता है। जो बिना छत्र का है उस पर छत्र छा देता है। कोई दूसरा नहीं है जो उसकी बराबरी कर सके। सब लोगों के देखते वह पर्वतों को ढहा देता है, और चींटी को हाथी के योग्य कर देता है। वह वज्र को तिनके के समान उड़ाता है और तिनके को वज्र की महिमा देता है। उसके किए हुए को कोई नहीं जानता। जो उसके मन में सोचा हुआ होता है, वही करता है। किसी को भोग और भोजन का सुख पूर्णरूप से देता है। किसी को संसार में भीख मिलना भी भारी दुःख है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : पदमावत (पृष्ठ 5)
    • रचनाकार : मलिक मोहम्मद जायसी
    • प्रकाशन : लोकभारती प्रकाशन
    • संस्करण : 2007

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