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हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

ho gai hai peer parwat si pighalni chahiye

दुष्यंत कुमार

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दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

दुष्यंत कुमार

और अधिकदुष्यंत कुमार

    हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए,

    इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए।

    आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी,

    शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए।

    हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में,

    हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए।

    सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं,

    मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए।

    मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही,

    हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साये में धूप (पृष्ठ 30)
    • रचनाकार : दुष्यंत कुमार
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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