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ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है

zi.ndga ka ko.ii maqas nahii.n hai

दुष्यंत कुमार

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दुष्यंत कुमार

ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है

दुष्यंत कुमार

और अधिकदुष्यंत कुमार

    ज़िंदगानी का कोई मक़सद नहीं है,

    एक भी क़द आज आदमक़द नहीं है।

    राम जाने किस जगह होंगे कबूतर,

    इस इमारत में कोई गुंबद नहीं है।

    आपसे मिलकर हमें अक्सर लगा है,

    हुस्न में अब जज़्ब-ए-अमजद नहीं है।

    पेड़-पौधे हैं बहुत बौने तुम्हारे,

    रास्तों में एक भी बरगद नहीं है।

    मैकदे का रास्ता अब भी खुला है,

    सिर्फ़ आमदरफ़्त ही ज़ायद नहीं है।

    इस चमन को देखकर किसने कहा था,

    एक पंछी भी यहाँ शायद नहीं है।

    स्रोत :
    • पुस्तक : साये में धूप (पृष्ठ 41)
    • रचनाकार : दुष्यंत कुमार
    • प्रकाशन : राधाकृष्ण प्रकाशन
    • संस्करण : 2019

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