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बुंदेला बाला

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बुंदेला बाला

 

माताः-
हे प्यारे कदापि तू इसको तुच्छ श्याम रेखा मत मान।
यह है शैल हिमाचल इसको भारत भूमि पिता पहिचान॥
नेह सहित ज्यों पितु पुत्री का सादर पालन करता है।
यह हिमगिरि त्योंही भारतहित पितृभाव हिय धरता है॥
गंगा यमुना युगुल रूप से प्रेम धार का देकर दान।
भारत भूमि रूप दुहिता का नेह सहित करता सनमान॥

पुत्रः-
यह जो बाम और नक़्शे के रेखामय अतिशय अभिराम।
शोभामय सुंदर प्रदेश है मुझे बता दे उसका नाम॥

माताः-
बेटा! यह पंजाब देश है पुण्यभूमि सुख शांत निवास।
सर्व प्रथम इस थलपर आकर किया आर्यों ने निजवास॥
कहीं गान ध्वनि, कहीं वेद ध्वनि, कहीं महामंत्रों का नाद।
यज्ञधूम से रहा सुवासित यह पंजाब सहित अह्लाद॥
इसी देश में बस के 'पोरस' ने रखा है भारत मान।
जब सम्राट सिकंदर आकर किया चाहता था अपमान॥
इससे नीचे देख पुत्र यह देश दृष्टि जो आता है।
सकल-बालुकामय प्रदेश यह राजस्थान कहाता है॥
इसके प्रति गिरिवर पर बेटा अरु प्रत्येक नदी के तीर।
देशमान हित करते आये आत्मविसर्जन छत्री वीर॥
कोई ऐसा थान नहीं है जहाँ अमर चिह्नों के रूप।
वीर कहानी रजपूतों की लिखी न होवे अमर अनूप॥
छत्री कुल अवतंस वीरवर है 'प्रताप' जी का यह देश।
रानी 'पद्मावती' सती ने यहीं किया है नाम विशेष॥
छत्रीवंश जात को चहिए करना इसको नित्य प्रणाम।
इससे छत्री वर्ग का जग में सदा रहेगा रोशन नाम॥

स्रोत :
  • पुस्तक : स्त्री कवि-संग्रह (पृष्ठ 94)
  • संपादक : ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल'
  • रचनाकार : बुंदेला बाला
  • प्रकाशन : साहित्य-भवन-लिमिटेड, प्रयाग
  • संस्करण : 1940

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