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रिटायरमेंट का गीत

ritayarment ka geet

जय चक्रवर्ती

अन्य

अन्य

जय चक्रवर्ती

रिटायरमेंट का गीत

जय चक्रवर्ती

और अधिकजय चक्रवर्ती

    लो भाई, लुंगी पहनने के

    दिन गए

    मुक्त हुए दफ़्तर के

    रोज के झमेलों से

    अफ़सर के, नेता के,

    चमचों के खेलों से

    नौ बजे, एक बजे,

    डेढ़ बजे, पाँच बजे—

    मुश्किल से छूटे हम

    वक़्त की नकेलों से

    लो भाई, दिन भर

    दिन गिनने के दिन गए।

    जॉगिंग और योगा तो

    केवल बहाना है

    सुबह-सुबह पुलिया पर

    दुख-सुख बतियाना है

    पीएफ की, पेंशन की

    बच्चों के टेंशन की—

    बातें सुननी सबसे

    सबको सुनाना है

    लो भाई, घँटों टहलने के

    दिन गए।

    ऐसे तो घर में हर पल

    आवाजाही है

    कहने की, रहने की

    लेकिन मनाही है

    जोड़ता-घटाता हूँ उम्र के

    गुनाहों को—

    मुजरिम हूँ, जज हूँ ख़ुद

    ख़ुद की गवाही है

    लो भाई, चुप रहकर

    सुनने के दिन गए।

    स्रोत :
    • रचनाकार : जय चक्रवर्ती
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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