Font by Mehr Nastaliq Web

जातीयता

jatiyata

तोरण देवी लली

अन्य

अन्य

तोरण देवी लली

जातीयता

तोरण देवी लली

और अधिकतोरण देवी लली

    है वह सुंदर शक्ति विजय दिखलानेवाली।

    छिपी हुई वह प्रीति सदा अपनानेवाली॥

    है वह अनुपम रीति समय पर उगनेवाली।

    जीव मात्र में निज प्रभाव दरसानेवाली॥

    जो कायरता को दूर कर सजीवता का ज्ञान दे।

    है वह बंधन जातीयता सत्यप्रेम में बाँध दे॥

    उसका मधुर विकास प्रथम अपने हित होता।

    बढ़कर फिर परिवार नेह बंधन है होता॥

    वही जाति हित वा स्वदेश हित हो जाता है।

    जातीयता का तभी वह निज पाता है॥

    इसके आगे युक्त हो धान्य धरा धन धाम से।

    कहलाता फिर प्रेम वह विश्व-प्रेम के नाम से॥

    जातीयता के भाव उदय जिनमें होते हैं।

    निर्भयता के उच्च उपासक वे होते हैं॥

    विद्या बुद्धि विचार त्याग उनके गुण होते।

    शारीरिक सुख हेत नहीं विचलित वे होते॥

    हृदय काँप उठता अहो जिस भीषण अत्याचार से।

    वे उसे मिटाने के लिए उठते हैं सुविचार से॥

    उसका केवल लक्ष्य यही होता तन मन से।

    हो परिपूर्ण स्वदेश विविध गुण अरु धन से॥

    वे अपने को भूल यही प्रण कर लेते हैं।

    कभी-कभी निज प्राण देशहित बलि देते हैं॥

    जिनके सुमिरन-मात्र से होता हृदय पवित्र है।

    उनके हृदयों में खिंचा जातीयता का चित्र है॥

    अत्याचार कुरीति मिटाकर दिखलावेगा।

    जीवन का शुभ लक्ष्य वीर वह सिखलावेगा॥

    जातीयता का भक्त हुआ जो भू पर आकर।

    माता का सत्पुत्र जगत् में वह कहला कर॥

    ऊँचे भावों से भरी 'लली' देश की भक्ति है।

    भुवन-विजयनी हो सदा जातीयता वह शक्ति है॥

    स्रोत :
    • पुस्तक : स्त्री कवि-संग्रह (पृष्ठ 50)
    • संपादक : ज्योतिप्रसाद मिश्र 'निर्मल'
    • रचनाकार : तोरण देवी लली
    • प्रकाशन : साहित्य-भवन-लिमिटेड, प्रयाग
    • संस्करण : 1940

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए