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नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम

nafas nafas qadam qadam

शलभ श्रीराम सिंह

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शलभ श्रीराम सिंह

नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम

शलभ श्रीराम सिंह

और अधिकशलभ श्रीराम सिंह

    नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम

    बस एक फ़िक्र दम-ब-दम

    घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए

    जवाब-दर-सवाल है के इंक़लाब चाहिए

    इंक़लाब ज़िंदाबाद

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    जहाँ वाम के ख़िलाफ़ साज़िशें हो शान से

    जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से

    जहाँ पे लब्ज़े-अमन एक ख़ौफ़नाक राज़ हो

    जहाँ कबूतरों का सरपरस्त एक बाज़ हो

    वहाँ चुप रहेंगे हम

    कहेंगे हाँ कहेंगे हम

    हमारा हक़ हमारा हक़ हमें जनाब चाहिए

    जवाब-दर-सवाल है के इंक़लाब चाहिए

    इंक़लाब ज़िंदाबाद

    इंक़लाब इंक़लाब

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    यक़ीन आँख मूँद कर किया था जिनको जान कर

    वही हमारी राह में खड़े हैं सीना तान कर

    उन्हीं की सरहदों में क़ैद हैं हमारी बोलियाँ

    वही हमारी थाल में परस रहे हैं गोलियाँ

    जो इनका भेद खोल दे

    हर एक बात बोल दे

    हमारे हाथ में वही खुली किताब चाहिए

    घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए

    जवाब-दर-सवाल है के इंक़लाब चाहिए

    इंक़लाब ज़िंदाबाद

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    वतन के नाम पर ख़ुशी से जो हुए हैं बेवतन

    उन्हीं की आह बेअसर उन्हीं की लाश बेकफ़न

    लहू पसीना बेचकर जो पेट तक भर सके

    करें तो क्या करें भला जो जी सके मर सके

    स्याह ज़िंदगी के नाम

    जिनकी हर सुबह और शाम

    उनके आसमान को सुर्ख़ आफ़ताब चाहिए

    घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए

    जवाब-दर-सवाल है के इंक़लाब चाहिए

    इंक़लाब ज़िंदाबाद

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    तसल्लियों के इतने साल बाद अपने हाल पर

    निगाह डाल सोच और सोच कर सवाल कर

    किधर गए वो वायदे सुखों के ख़्वाब क्या हुए

    तुझे था जिनका इंतज़ार

    वो जवाब क्या हुए

    तू इनकी झूठी बात पर

    ना और ऐतबार कर

    के तुझको साँस-साँस का सही हिसाब चाहिए

    घिरे हैं हम सवाल से हमें जवाब चाहिए

    नफ़स-नफ़स क़दम-क़दम बस एक फ़िक्र दम-ब-दम

    जवाब-दर-सवाल है के इंक़लाब चाहिए

    इंक़लाब ज़िंदाबाद

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    नफ़स-नफ़स, क़दम-क़दम

    बस एक फ़िक्र दम-ब-दम

    घिरे हैं हम सवाल से, हमें जवाब चाहिए

    जवाब दर-सवाल है कि इंक़लाब चाहिए

    इंक़लाब ज़िंदाबाद

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    जहाँ अवाम के ख़िलाफ साज़िशें हों शान से

    जहाँ पे बेगुनाह हाथ धो रहे हों जान से

    वहाँ चुप रहेंगे हम, कहेंगे हाँ कहेंगे हम

    हमारा हक़ हमारा हक़ हमें जनाब चाहिए

    इंक़लाब ज़िंदाबाद

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    ज़िंदाबाद इंक़लाब

    स्रोत :
    • रचनाकार : शलभ श्रीराम सिंह
    • प्रकाशन : कविताकोश

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