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श्राँति रण में

shranti ran mein

इति शिवहरे

अन्य

अन्य

इति शिवहरे

श्राँति रण में

इति शिवहरे

और अधिकइति शिवहरे

    श्राँति रण में धैर्य के धनु-बाण 

    त्यागोगे धनञ्जय!

    हार मानोगे धनञ्जय?

    वे भला भयभीत जिनके सामने हर भय झुका है।

    वे जिन्होंने 'भाग्य' के आगे सदा 'भुजबल' रखा है।

    देख जिनका शौर्य सब व्यवधान भी दम तोड़ते हों।

    जो तिमिर में 'दीप' धरकर 'भानु' का भ्रम तोड़ते हों।

    आज! हो निष्क्रिय स्वयं पर,

    प्रश्न दागोगे धनञ्जय?

    हार मानोगे धनञ्जय?

    खिन्नता के सिंधु में मन व्यर्थ ही इतना प्लवित है!

    'आधि' में रहकर बढ़ावा 'व्याधि' को देना उचित है?

    आचरण की अग्नि में तप दिव्यता चुनने लगेंगे!

    भीरु बनकर या सबल असमर्थता चुनने लगेंगे?

    बाद क्या अनुयायियों को,

    मुख दिखाओगे धनञ्जय?

    हार मानोगे धनञ्जय?

    हे परंतप! जाग निज सामर्थ्य को पहचान लेना।

    संयमित कर इंद्रियों को दास अपना मान लेना।

    योग, ग्रह-नक्षत्र को भी मुट्ठियों में बाँध लेना।

    काल रूपी विहग के 'पर' पर निशाना साध लेना।

    जिस समय धर्मार्थ प्रत्यंचा,

    चढ़ाओगे धनञ्जय,

    जीत जाओगे धनञ्जय!

    स्रोत :
    • रचनाकार : इति शिवहरे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

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