Font by Mehr Nastaliq Web

आँगन की तुलसी मुरझानी

angan ki tulsi murjhani

नईम

अन्य

अन्य

नईम

आँगन की तुलसी मुरझानी

नईम

आँगन की तुलसी मुरझानी,

चौपालों की पीपल।

देती नहीं प्रार्थनाएँ अब,

थोड़ा भी संबल।

बरगद पर गांडीव टँगे हैं छाया सहमी-सी,

तीर्थक्षेत्र से वही हवाएँ लगें विधर्मी-सी।

धुर अकाल खड़खड़ा रहा है,

बुरी तरह साँकल।

हार गए रन बुरी तरह फिर कालिंजर झाँसी।

औचक मारे हुए समय ये प्रयाग काशी।

मृगतृष्णाएँ भी आँखों से—

हुई आज ओझल।

स्रोत :
  • पुस्तक : लिख सकूँ तो— (पृष्ठ 41)
  • रचनाकार : नईम
  • प्रकाशन : भारतीय ज्ञानपीठ
  • संस्करण : 2003

Additional information available

Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

OKAY

About this sher

Close

rare Unpublished content

This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

OKAY

हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

रजिस्टर कीजिए