Font by Mehr Nastaliq Web

हे! मनस्वी मानवी

he! manasvi manavi

इति शिवहरे

अन्य

अन्य

इति शिवहरे

हे! मनस्वी मानवी

इति शिवहरे

और अधिकइति शिवहरे

    हे! मनस्वी मानवी,

    अवबोध का आह्वान लाओ।

    तुम नवल उत्थान लाओ!

    रज सने पग धर गए वो थान देवालय बनाया।

    राजमहलों में सुख वनवास में एश्वर्य पाया।

    तुम 'उपेक्षा' को 'अपेक्षा' में बदलना जानती हो।

    हाय! फिर भी बन 'दया का पात्र' जीना चाहती हो।

    पूज्य, विदुषी-वामिनी,

    अभिनत्व का अवसान लाओ।

    तुम नवल उत्थान लाओ!

    सोचती हो? मूकदर्शक, ये तुम्हें सहयोग देंगे।

    रक्त की अंतिम तुम्हारी बूंद भी वे सोख लेंगे।

    बिन कहे कब स्वत्व पाया? माँगना पड़ता यहाँ है।

    रो दे शिशु पूर्व इसके क्षीर भी मिलता कहाँ है!

    अब उठो! तेजस्विनी,

    स्वयमेव का सम्मान लाओ।

    तुम नवल उत्थान लाओ!

    भावनी, भव्या, भवानी के हृदय में भय बसेंगे?

    चक्षुओं में दीप जिनके क्या उन्हें ये तम डसेंगे?

    काल के कटु पृष्ठ पर सम्भावनाएँ जोड़नी हैं।

    तुम वही जिसको समूची वर्जनाएँ तोड़नी हैं।

    तमसो मा ज्योतिर्गमय का,

    हर्षमय जय-गान लाओ।

    तुम नवल उत्थान लाओ!

    स्रोत :
    • रचनाकार : इति शिवहरे
    • प्रकाशन : हिन्दवी के लिए लेखक द्वारा चयनित

    संबंधित विषय

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए