Font by Mehr Nastaliq Web

अव्यवस्थित

awyawasthit

जयशंकर प्रसाद

अन्य

अन्य

जयशंकर प्रसाद

अव्यवस्थित

जयशंकर प्रसाद

और अधिकजयशंकर प्रसाद

    विश्व के नीरव निर्जन में।

    जब करता हूँ बेकल, चंचल,

    मानस को कुछ शांत,

    होती है कुछ ऐसी हलचल,

    हो जाता है भ्रांत,

    भटकता है भ्रम के बन में,

    विश्व के कुसुमित कानन में।

    जब लेता हूँ आभारी हो,

    बल्लरियों से दान,

    कलियों की माला बन जाती,

    अलियों का हो गान,

    विकलता बढ़ती हिमकन में,

    विश्वपति! तेरे आँगन में।

    जब करता हूँ कभी प्रार्थना,

    कर संकलित विचार,

    तभी कामना के नूपुर की,

    हो जाती झनकार,

    चमत्कृत होता हूँ मन में,

    विश्व के नीरव निर्जन में।

    स्रोत :
    • पुस्तक : संपूर्ण काव्य (पृष्ठ 167)
    • रचनाकार : जयशंकर प्रसाद
    • प्रकाशन : चिंतन प्रकाशन
    • संस्करण : 2003

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY

    हिन्दवी उत्सव, 27 जुलाई 2025, सीरी फ़ोर्ट ऑडिटोरियम, नई दिल्ली

    रजिस्टर कीजिए