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सोना और रूपा

sona aur rupa

एक राजकुमार शाम को शिकार से लौट रहा था। लौटते समय अपनी काली घोड़ी को पानी पिलाने के लिए वह झरने पर रुका। पानी पर अपने और घोड़ी के प्रतिबिंब के अतिरिक्त उसने सोने-चाँदी के कुछ बाल तैरते देखे। निश्चित ही सोने-चाँदी के बालों वाली सुंदरियाँ ऊपर झरने में नहाई हैं। वह झुका और बाल उठा लिए। उन बालों को वह देर तक अपलक देखता रहा। जिन स्त्रियों के बाल इतने सुंदर हैं वे ख़ुद कितनी सुंदर होंगी! मन ही मन कल्पना करते हुए वह उनकी मोहनी सूरत पर मर मिटा। उन बालों को उसने पगड़ी में खोंसा और घोड़ी पर बैठकर राजमहल की ओर चल पड़ा।

ब्यालू का समय हो गया, मगर राजकुमार का कहीं अता-पता नहीं! चारों तरफ़ उसकी ख़ोज होने लगी। रानी ने महल का कोना-कोना छनवा डाला। पर उसका सुराग नहीं मिला।

एक नौकरानी शक्कर लेने के लिए कोठार में गई तो क्या देखती है कि राजकुमार फ़र्श पर औंधे मुँह लेटा है। वह चिल्लाने को ही थी कि राजकुमार ने उसे बरज दिया, “अगर किसी को कुछ बताया तो जान से हाथ धो बैठोगी।” पर कहते हैं कि स्त्री और हवा राज़ नहीं पचा सकतीं। नौकरानी ने फुसफुसाते हुए रानी को सारी बात बता दी। रानी उसे पंचम सुर में डाँटते हुए कोठार में लाई, “मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ती हो, पर काम करते हुए नानी मरती है। कोठार देखो, कितना गंदा है!” राजकुमार को वहाँ देखकर उसने ऐसा ज़ाहिर किया मानो उसे कुछ पता ही हो, “अरे, यह कौन सो रहा है? ओह, यह तो राजकुमार है! क्या बात है बेटे? तुम यहाँ जमीन पर क्यों लेटे हो? मुझे बताओ, तुम्हें किस बात का दुख है? अगर किसी ने तुम्हारा अपमान किया है तो मैं उसकी ज़ुबान खिंचवा लूँगी। अगर किसी ने तुम पर हाथ उठाया है तो मैं उसका हाथ कटवा दूँगी। मुझे बताओ बात क्या है और भगवान के लिए यहाँ से उठो!”

राजकुमार उठा और पगड़ी में से सोने-चाँदी के बाल निकाल कर रानी माँ को दिखाते हुए बोला, “मैं इन बालों वाली लड़कियों से शादी करूँगा।”

रानी ने कहा, “बस, इतनी-सी बात! हम इन्हें पाताल में भी ढूँढ़ निकालेंगे।”

“मुझे वही लड़कियाँ चाहिए जिनके ये बाल हैं।”

“हाँ बेटे हाँ, तुम निश्चिंत रहो!” कहने को तो रानी ने कह दिया, पर कोठार से निकलते समय वह व्याकुल थी। उसका सर चकरा रहा था।

पूरी राजधानी में दूत फैल गए। गली-गली में मुनादी करवा दी गई कि शहर की तमाम जवान औरतें कल सवेरे नंगे सर राजमहल के अहाते में से गुज़रें।

अगले दिन सवेरे राजमहल के सामने से औरतों का जुलूस निकला। राजकुमार घंटों उन्हें देखता रहा, पर उसे एक भी औरत ऐसी नहीं दिखी जिसके बाल उसके हाथ के बालों से मेल खाते हों।

सहसा उसकी नज़र राजमहल के अंतःपुर के आँगन में बैठी दो लड़कियों पर पड़ी। उनके बाल सोने और चाँदी के थे। उसने रानी माँ को बुलवाया और उनकी ओर इशारा किया। रानी माँ को काटो तो ख़ून नहीं! अटकते हुए बोली, “हे भगवान! ये तुम्हारी बहनें हैं, सोना और रूपा!”

राजकुमार का चेहरा फक हो गया। पर उसने हठ नहीं छोड़ा। बोला, “वे कोई भी हों, मैं उनसे शादी करूँगा। नहीं तो मैं यह देश छोड़कर चला जाऊँगा।”

राजा महल से नीचे उतरा और उसने बेटे को समझाया कि वह ज़िद छोड़ दे। रिश्तेदारों, बुजर्ग़ों और मंत्रियों ने भी उसे समझाने में कोई कसर नहीं रखी। रानी ने हाथ जोड़कर बेटे से विनती की कि वह अपना इरादा छोड़ दे। पर राजकुमार पर कोई असर नहीं हुआ।

शादी की तैयारियाँ होने लगीं। हरे बाँस की बल्लियों पर रेशम और किरमिच का विशाल शामियाना ताना गया। बात फैलते-फैलते सोना और रूपा के कानों में भी पड़ी। वे अवाक रह गईं। उनके पाँवों के नीचे से ज़मीन खिसक गई। उनके चेहरे स्याह हो गए। आँखें भर आईं।

जिस नदी में वे नहाई थीं उसके किनारे एक चंदन का पेड़ था। उसे वे बचपन से सींचती और उसकी देखभाल करती आई थीं। वह उनके साथ-साथ बड़ा हुआ था। अब वह घेर-घुमेर पेड़ बन गया था।

शादी के दिन सोना और रूपा उस पेड़ पर छुपकर बैठ गईं। पाणिग्रहण का मुहूर्त नज़दीक आया तो उनकी ज़ोर-शोर से तलाश होने लगी। अंततः राजमहल के सेवकों ने उन्हें चंदन की ऊँची डाल पर बैठा देख लिया। सेवकों ने उनसे नीचे उतरने की याचना की, पर उन्होंने कान नहीं दिया। आख़िर राजा स्वयं आया और बोला—

नीचे उतरो, नीचे उतरो,

मेरी दुलारियों सोना और रूपा!

निकली जा रही विवाह की वेला!

सोना और रूपा

सोना-रूपा ने कहा—

पिताजी, पूज्य पिताजी!

कैसे कहेंगी तुम्हें सुसर पिताजी?

ऊपर, और ऊपर, हरियल चंदन!

चंदन का पेड़ और लंबा हो गया और सोना-रूपा और ऊपर चली गईं।

सब घर वाले वहाँ इकट्ठे हो गए और उन्हें नीचे उतरने के लिए मनाने लगे। पर वे टस से मस नहीं हुईं। हर बुलावे पर पेड़ और लंबा हो जाता और वे और ऊपर चली जातीं।

आख़िर ख़ुद राजकुमार वहाँ आया। बोला—

नीचे उतरो, नीचे उतरो,

मेरी बहनो सोना और रूपा!

हो गई हमारे विवाह की वेला।

पर उन्होंने जवाब दिया—

भैया, प्यारे भैया!

कैसे कहेंगी तुम्हें पति भैया?

ऊपर, और ऊपर, हरियल चंदन!

आन की आन में आकाश काली घटाओं से भर गया। बिजलियाँ कड़कने लगीं। सहसा चंदन का पेड़ दो हिस्सों में बंट गया और सोना-रूपा को अपने भीतर समेट लिया। घर वालों के देखते-देखते सोना और रूपा चंदन के पेड़ में समा गईं।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत की लोक कथाएँ (पृष्ठ 11)
  • संपादक : ए. के. रामानुजन
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2001

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