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समय-डिबिया

samay Dibiya

एक मछुआरा था जिसका नाम था बकुल। वह समुद्र में जाल डालता और मछलियाँ पकड़ता। मछलियाँ पकड़ने कभी-कभी किसी द्वीप पर भी निकल जाता। द्वीप में मछली पकड़ने वालों की भीड़ कम होती या फिर किसी-किसी द्वीप पर बकुल के अतिरिक्त कोई होता। ऐसी स्थिति में बकुल को ढेर सारी मछलियाँ मिल जातीं। बकुल को एक ऐसे द्वीप का पता था जिसके बारे में और कोई मछुआरा नहीं जानता था। उस द्वीप के चारों ओर लहरें बहुत तेज़ी से उठती-गिरती थीं। इस कारण से भी अन्य मछुआरे वहाँ जाने में हिचकते थे। बकुल निडर था। उसे किसी चीज़ से डर नहीं लगता था।

एक दिन बकुल अपने उसी एकांत द्वीप पर मछली पकड़ने गया। उसने पहली बार जाल डाला तो पहली बार में सिर्फ़ एक छोटी मछली जाल में फँसी। बकुल ने उस मछली को उठाकर अपनी टोकरी में डालना चाहा तो वह मछली गिड़गिड़ाकर विनती करने लगी कि उसे छोड़ दिया जाए। बकुल ने भी सोचा कि इतनी छोटी मछली से तो उसका अपना पेट भी नहीं भरेगा अतः उसने उस छोटी मछली को छोड़ दिया और दुबारा जाल डाला। दुबारा में ढेर सारी बड़ी-बड़ी मछलियाँ फँसीं। बकुल उन्हें लेकर अपने घर लौट आया।

दूसरे दिन उसी समय पर बकुल फिर उसी द्वीप पर पहुँचा। उसने जाल डाला और बैठ गया। उसी समय जाल की डोर हिलीं बकुल ने जाल खींचकर देखा। बकुल देखकर चकित रह गया कि उसके जाल में किसी मछली के बदले एक जलपरी थी।

‘मैं वही छोटी मछली हूँ जिसे तुमने कल मुक्त कर दिया था। तुम दयालु हो इसलिए मैं तुमसे मिलने चली आई।’ जलपरी ने कहा।

इसके बाद दोनों बहुत देर तक बातें करते रहे। शाम होने पर बकुल मछलियों समेटकर घर लौट आया।

दूसरे दिन जलपरी फिर मिली। वह अपने महल और अपनी बस्ती के बारे में चर्चा करती रही। जलपरी की बातें सुन-सुनकर बकुल के मन में उसकी बस्ती देखने इच्छा उत्पन्न हुई। किंतु वकुल ने संकोचवश कहा नहीं।

जब बकुल और जलपरी को परस्पर मिलते बहुत दिन हो गए तो उसने जलपरी का महल देखने की इच्छा प्रकट की।

‘तुम मेरे महल में चलो तो अच्छा है क्यों कि हमारे और तुम्हारे समय में बहुत अंतर है।’ जलपरी ने कहा।

‘कुछ भी हो, मैं तुम्हारा महल देखना चाहता हूँ और कुछ दिन वहाँ रहना भी चाहता हूँ। यदि तुम मुझे प्यार करती हो तो अपने महल में ले चलो।’ बकुल ने जलपरी से स्पष्ट शब्दों में कहा।

‘ठीक है, चलो!’ जलपरी बकुल को समुद्र के तल में बने अपने महल में ले गई।

बकुल वहाँ की सुख-सुविधा देखकर बहुत प्रभावित हुआ। जलपरी की माँ को जब पता चला कि बकुल ने उसकी बेटी को प्राणदान दिया था तो उसने बकुल से महल में कुछ समय व्यतीत करने का आग्रह किया। बकुल तो यही चाहता था।

कुछ दिन व्यतीत करने के बाद बकुल की इच्छा घर लौटने की हुई। जलपरी ने उसे विदा करते हुए एक डिबिया दी।

‘यह समय की डिबिया है। यदि तुम किसी उलझन में पड़ जाओ तो इस डिबिया को खोलना। तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल जाएगा।’ जलपरी ने कहा।

बकुल डिबिया लेकर समुद्र से बाहर निकला। बाहर आते ही वह देखकर चकित रह गया कि वहाँ का दृश्य बदल चुका है। वहाँ सब कुछ नया-नया है। वह दौड़कर अपने घर गया। वहाँ भी सब कुछ बदल चुका था। उसके छोटे से घर के बदले एक बड़ी इमारत खड़ी थी। यह देखकर वह व्याकुल हो उठा। उसने वहीं रहने वाले एक आदमी से पूछा कि यहाँ रहने वाले बकुल का घर कहाँ गया?

‘कौन बकुल? अच्छा, तो तुम उस मछुआरे की बात तो नहीं कर रहे हो जो सौ वर्ष पहले यहाँ रहता था। मैंने अपने दादा से सुना था कि वह मछुआरा एक बार समुद्र में मछली पकड़ने गया तो कभी लौटकर नहीं आया। संभवतः समुद्री तूफ़ान में फँसकर वह डूब गया।’ उस आदमी ने कहा।

‘यह ग़लत है।’ बकुल हड़बड़ाकर बोला।

‘भाई, मैं तो सौ वर्ष पहले था नहीं। जो कुछ मैंने सुन रखा है, वह मैंने तुम्हें बता दिया।’ यह कहकर वह आदमी अपने काम में लग गया।

बकुल उस आदमी की बातों तथा वहाँ के परिवर्तित परिदृश्य पर मनन-चिंतन करता हुआ समुद्र तट तक पहुँचा। तभी उसे समय-डिबिया की याद आई। उसने सोचा कि शायद मेरे प्रश्न का उत्तर यह समय डिबिया दे दे कि यहाँ यह सब बदल क्यों गया?

समय-डिबिया खोलते ही हवा का एक झोंका आया और बकुल एक जर्जर वृद्ध के रूप में परिवर्तित हो गया। उसके हाथ-पाँव काँपने लगे। उसकी कमर झुक गई।

तभी उसे याद आया कि जलपरी ने उसे अपने महल ले जाने से पहले चेतावनी दी थी कि तुम्हारे और हमारे समय में बहुत अंतर है। उस समय यह बात बकुल को समझ में नहीं आई थी किंतु अब जब यह बात समझ में आई तो बहुत देर हो चुकी थी।

बकुल ने जलपरी के महल में कुछ वर्ष ही बिताए थे किंतु भूमि पर यह समय सौ वर्ष के बराबर था। जब बकुल जलपरी के साथ गया था उस समय वह मात्र चौबीस वर्ष का था और वहाँ रहते हुए वहाँ के समयानुसार अट्ठाईस-तीस वर्ष का ही हुआ था किंतु घर लौटने पर भूमि के समयानुसार वह एक सौ चौबीस वर्ष का हो चुका था।

कुछ पल बाद बकुल के काँपते हुए हाथ से डिब्बी छूटकर गिर गई और बकुल भी तट की रेत पर गिर पड़ा। वृद्धावस्था के अंतिम चरण में पहुँच चुकने के कारण बकुल के प्राण पखेरू उड़ गए। अपनी अंतिम साँस लेते समय बकुल को इस बात का पछतावा रहा कि उसने समय रहते जलपरी की बात को समझने का प्रयास क्यों नहीं किया?

इसीलिए कहा गया है कि बिना सोचे-समझे, बिना जाँचे-परखे कोई काम नहीं करना चाहिए।

स्रोत :
  • पुस्तक : भारत के आदिवासी क्षेत्रों की लोककथाएं (पृष्ठ 249)
  • संपादक : शरद सिंह
  • प्रकाशन : राष्ट्रीय पुस्तक न्यास भारत
  • संस्करण : 2009

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